List of top Hindi Elective Questions asked in CBSE Class Twelve Board Exam

निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
वृद्धाएँ धरती का नमक हैं,
किसी ने कहा था!
जो घर में हो कोई वृद्धा –
खाना ज्यादा अच्छा पकता है,
परदे-पेटिकोट और पायजामे भी दर्जी और
फ़ूफ़ाओं के
मुहताज नहीं रहते,
सजा-धजा रहता है घर का हर कमरा,
बच्चे ज़्यादा अच्छा पलते हैं,
उनकी नन्हीं-मुन्नी उल्टियाँ सँभालती
जगती हैं वे रात-भर,
घुल जाती हैं बच्चों के सपनों में
हिमालय-विमालय की अटल कंदराओं की
दिव्यवर्णी-दिव्यगंधी जड़ी-बूटियाँ और
फूल-वूल!
उनके ही संग-साथ से भाषा में बच्चों की
आ जाती है एक अनजव कोंपल
मुहावरों, मिथकों, लोकोक्तियों,
लोकगीतों, लोकगाथाओं और कथा-समयों की।
उनके ही दम से
अतल कूप खुद जाते हैं बच्चों के मन में
आदिम स्मृतियों के।
रहती हैं बुढ़ुआँ, घर में रहती हैं
लेकिन ऐसे जैसे अपने होने की खातिर हों
क्षमाप्रार्थी
– लोगों के आते ही बैठक से उठ जातीं,
छुप-छुपकर रहती हैं छाया-सी, माया-सी!
पति-पत्नी जब भी लड़ते हैं उनको लेकर
कि तुम्हारी माँ ने दिया क्या, किया क्या–
कुछ देर वे करती हैं अनसुना,
कोशिश करती हैं कुछ पढ़ने की,
बाद में टहलने लगती हैं,
और सोचती हैं बेचैनी से – ‘गाँव गए बहुत दिन हुए!’
उनके बस यह सोचने-भर से
जादू से घर में सब हो जाता है ठीक-ठाक,
सब कहते हैं, ‘अरे, अभी कहाँ जाओगी,
अभी तो नहीं जाना है बाहर, बच्चों को रखेगा
कौन?’
कपड़ों की छाती जब फटती है –
खुल जाती है उनकी उपयोगिता।
 

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः
भारतीय कला में लोक भी है और शास्त्र भी। भारतीय लोक कला की दृष्टि यह है कि उसके दृष्टिपथ से कुछ छूटे नहीं, यही दृष्टि भारत के लोक काव्य की भी है। जो कुछ लोक ने कहा, अनुभव किया वह कला हो गया। इसी अनुभव ने जब तल्ख़ा पकने तो मांडने बन गए, घोटे बन गए और लोक के तमाम देवी-देवता अपने लोक रंग के साथ घरों की भित्तियों पर विराज गए। सब एक ही धारातल से उपजे हैं चाहे वह लोक हो, चाहे शास्त्र हो या उसकी कला। इन तीनों में कहीं द्वंद नहीं है। लोक और शास्त्र में विरोध का इसलिए प्रश्न नहीं है क्योंकि शास्त्र लोक की ही देन है और यही स्थिति कला की भी है।
भारतीय कला को लेकर प्रायः यह कहा जाता है कि भारतीय कला विशेष रूप से मध्यकालीन कला लोक का प्रतिनिधित्व नहीं करती, लेकिन यह सत्य नहीं है। राज्याश्रयी चित्रों और शिल्पियों ने भी अपने लोक को रचा है। उन संरक्षकों ने भी अपने लोक की सर्जना अपने अंकों में की जो विहारों में रहते थे। लोक के रंग का कोई वर्जित नहीं रहा। चाहे अजन्ता हो, खजुराहो हो या माउट आभू पर बनी मंदिर शृंखला, इन सभी में लोक का अंकन है। माउट आभू में एक मंदिर ऐसा भी है जहाँ शिल्पियों ने अपने धन और अपने श्रम से बनाय। जहाँ खजुराहो के अन्य भित्तिचित्रों पर लोक व्यापार के अंकन वहाँ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंकन हैं। खजुराहो के शिल्पों में भी अधिकांश शिल्प लोक व्यापार के शिल्प हैं।
भारतीय कला का उद्गम अनादि है। आदि ग्रंथों में इसके प्रमाण हैं और फिर इसकी निरंतरता कभी विराम नहीं लेती। संदर्भ तो प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक रचे गए ग्रंथों में हैं। कालक्रम की दृष्टि से यदि देखा जाए तो भीमबेटका की गुफाओं में दस हजार वर्ष पूर्व किए गए आदिमानव के अंकों से लेकर छठीं की दूसरी सदी में हुए शुंग कला के समय के अश्वमेध के घोड़े का अंकन मौजूद है।
सार रूप में कहा जा सकता है कि भारत में लोक ने पृथक रूप से उपस्थित रहकर अपना अस्तित्व रचने वाली ऐसी कोई शिल्पकला, स्थापत्य अथवा चित्रांकन की परंपरा नहीं रहने दी, जिसमें लोक छूट गया हो।
 

निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : 
नाम बड़ा है या रूप? पद पहले है या पदार्थ? 
पदार्थ सामने है, पद नहीं सूझ रहा है। 
मन व्याकुल हो गया। 
स्मृतियों के पंख फैलाकर सुदूर अतीत के कोनों में झाँकता रहा। 
सोचता हूँ इसमें व्याकुल होने की क्या बात है? 
नाम में क्या रखा है – 'बाह्यद देस्सर इन द नेम'! 
नाम की ज़रूरत ही हो तो सौ दिए जा सकते हैं। 
सुस्मिता, गिरिकांता धरतीधकेल, पहाड़फोड़, पातालभेद! 
पर मन नहीं मानता। 
नाम इसलिए बड़ा नहीं है कि वह नाम है। 
वह इसलिए बड़ा होता है कि उसे सामाजिक स्वीकृति मिली होती है। 
रूप व्यक्ति सत्य है, नाम समाज सत्य। 
नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज की मुहर लगी होती है। 
आधुनिक शिक्षित लोग जिसे ‘सोशल सेन्शन’ कहते हैं।

निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : बड़ी बहुरिया के संवाद का प्रत्येक शब्द उसके मन में काँटे की तरह चुभ रहा है -- 
'किसके भरोसे यहाँ हूँगी? एक नौकर था, वह भी कल भाग गया। 
गाय खूंटे से बंधी भूखी-प्यासी हिनक रही है। 
मैं किसके लिए इतना दुख झेलूँ?' हरगोबिन ने अपने पास बैठे हुए एक यात्री से पूछा, 
‘क्यों भाई साहेब, थाना विंधपुर में डाकगाड़ी रुकती है या नहीं?’ यात्री ने मानो कुकुरकर कहा, “थाना विंधपुर में सभी गाड़ियाँ रुकती हैं।” हरगोबिन ने भाँप लिया, यह आदमी चिड़चिड़े स्वभाव का है, इससे कोई बातचीत नहीं जमेगी। 
वह फिर बड़ी बहुरिया के संवाद को मन-ही-मन दोहराने लगा लेकिन, संवाद सुनाते समय वह अपने क्लेशों को कैसे संभाल सकेगा! 
बड़ी बहुरिया संवाद कहते समय जहाँ-जहाँ रोई है, वहाँ वह रोयेगा।

निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर दिए गए बहुविकल्पीय प्रश्नों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प का चयन कर लिखिए :

एक मिल मालिक के दिमाग में अजीब-अजीब ख़याल आया करते थे जैसे सारा संसार मिल हो जाएगा,
सारे लोग मज़दूर और वह उनका मालिक या मिल में और चीज़ों की तरह आदमी भी बनने लगेंगे,
तब मज़दूरी भी नहीं देनी पड़ेगी, बोरों-बोरों।
एक दिन उसके दिमाग में ख़याल आया कि अगर मज़दूरी के चार हाथ हो तो काम कितना तेज़ हो
और मुनाफ़ा कितना ज़्यादा। लेकिन यह काम करेगा कौन?

उसने सोचा, वैज्ञानिक करेंगे, ये किस मर्ज़ की दवा?
उसने यह काम करने के लिए बड़े वैज्ञानिकों को मोटी तनख्वाह पर नौकर रखा और वे नौकर भी बने।
कई साल तक शोध और प्रयोग करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि ऐसा असंभव है कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ।
मिल मालिक वैज्ञानिकों से नाराज़ हो गया।
उसने उन्हें नौकरी से निकाल दिया और अपने-आप इस काम को पूरा करने के लिए जुट गया।