Question:

निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : 
नाम बड़ा है या रूप? पद पहले है या पदार्थ? 
पदार्थ सामने है, पद नहीं सूझ रहा है। 
मन व्याकुल हो गया। 
स्मृतियों के पंख फैलाकर सुदूर अतीत के कोनों में झाँकता रहा। 
सोचता हूँ इसमें व्याकुल होने की क्या बात है? 
नाम में क्या रखा है – 'बाह्यद देस्सर इन द नेम'! 
नाम की ज़रूरत ही हो तो सौ दिए जा सकते हैं। 
सुस्मिता, गिरिकांता धरतीधकेल, पहाड़फोड़, पातालभेद! 
पर मन नहीं मानता। 
नाम इसलिए बड़ा नहीं है कि वह नाम है। 
वह इसलिए बड़ा होता है कि उसे सामाजिक स्वीकृति मिली होती है। 
रूप व्यक्ति सत्य है, नाम समाज सत्य। 
नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज की मुहर लगी होती है। 
आधुनिक शिक्षित लोग जिसे ‘सोशल सेन्शन’ कहते हैं।

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सप्रसंग व्याख्या में संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या और निष्कर्ष को क्रमवार और स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए।
Updated On: Jul 22, 2025
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Solution and Explanation

संदर्भ:
यह गद्यांश पाठ्यपुस्तक की एक गहन विचारणीय रचना से लिया गया है, जिसमें नाम, रूप और समाज में उनकी स्वीकृति को लेकर एक वैचारिक विमर्श प्रस्तुत किया गया है। यह गद्यांश व्यक्ति की पहचान, समाज में उसकी स्वीकृति और मूल्यों की पड़ताल करता है।
प्रसंग:
लेखक के मन में यह द्वंद्व चलता है कि नाम बड़ा है या रूप। स्मृतियों के माध्यम से वह अतीत की यात्रा करता है और उन नामों को याद करता है, जो समाज में बिना किसी रूप के केवल विचार और कार्यों से स्थापित हुए। लेखक का यह चिंतन वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों और मूल्यों के साथ जुड़ा हुआ है।
व्याख्या:
गद्यांश में लेखक कहता है कि नाम में क्या रखा है। रूप और पद एक व्यक्ति की पहचान नहीं होते जब तक कि उन्हें समाज की स्वीकृति न मिल जाए। उदाहरणस्वरूप ‘सुस्मिता’, ‘गिरीकांता’, ‘धरतीधकेल’ आदि नाम बिना संदर्भ के खोखले प्रतीत होते हैं। लेखक मानता है कि नाम तभी बड़ा होता है जब वह समाज के सत्य पर खरा उतरे।
नाम वह पद बन जाता है जिस पर समाज की मोहर लग चुकी हो, और जब वह किसी व्यक्तित्व या कार्य से जुड़ता है तो वह ‘सामाजिक सत्य’ बन जाता है। इसी को आधुनिक शिक्षित समाज 'सोशल सेलेब्रेशन' कहता है। लेखक इस विचार से हमें यह संदेश देता है कि केवल नाम नहीं, नाम के पीछे की सच्चाई और समाज में उसकी उपयोगिता ही महत्वपूर्ण होती है।
निष्कर्ष:
यह गद्यांश नाम और प्रतिष्ठा की वास्तविकता को उजागर करता है। यह हमें सोचने को मजबूर करता है कि हमारी पहचान समाज में हमारे कार्य, सच्चाई और समाज की स्वीकृति से बनती है न कि केवल नाम या पद से।
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