निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः
भारतीय कला में लोक भी है और शास्त्र भी। भारतीय लोक कला की दृष्टि यह है कि उसके दृष्टिपथ से कुछ छूटे नहीं, यही दृष्टि भारत के लोक काव्य की भी है। जो कुछ लोक ने कहा, अनुभव किया वह कला हो गया। इसी अनुभव ने जब तल्ख़ा पकने तो मांडने बन गए, घोटे बन गए और लोक के तमाम देवी-देवता अपने लोक रंग के साथ घरों की भित्तियों पर विराज गए। सब एक ही धारातल से उपजे हैं चाहे वह लोक हो, चाहे शास्त्र हो या उसकी कला। इन तीनों में कहीं द्वंद नहीं है। लोक और शास्त्र में विरोध का इसलिए प्रश्न नहीं है क्योंकि शास्त्र लोक की ही देन है और यही स्थिति कला की भी है।
भारतीय कला को लेकर प्रायः यह कहा जाता है कि भारतीय कला विशेष रूप से मध्यकालीन कला लोक का प्रतिनिधित्व नहीं करती, लेकिन यह सत्य नहीं है। राज्याश्रयी चित्रों और शिल्पियों ने भी अपने लोक को रचा है। उन संरक्षकों ने भी अपने लोक की सर्जना अपने अंकों में की जो विहारों में रहते थे। लोक के रंग का कोई वर्जित नहीं रहा। चाहे अजन्ता हो, खजुराहो हो या माउट आभू पर बनी मंदिर शृंखला, इन सभी में लोक का अंकन है। माउट आभू में एक मंदिर ऐसा भी है जहाँ शिल्पियों ने अपने धन और अपने श्रम से बनाय। जहाँ खजुराहो के अन्य भित्तिचित्रों पर लोक व्यापार के अंकन वहाँ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंकन हैं। खजुराहो के शिल्पों में भी अधिकांश शिल्प लोक व्यापार के शिल्प हैं।
भारतीय कला का उद्गम अनादि है। आदि ग्रंथों में इसके प्रमाण हैं और फिर इसकी निरंतरता कभी विराम नहीं लेती। संदर्भ तो प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक रचे गए ग्रंथों में हैं। कालक्रम की दृष्टि से यदि देखा जाए तो भीमबेटका की गुफाओं में दस हजार वर्ष पूर्व किए गए आदिमानव के अंकों से लेकर छठीं की दूसरी सदी में हुए शुंग कला के समय के अश्वमेध के घोड़े का अंकन मौजूद है।
सार रूप में कहा जा सकता है कि भारत में लोक ने पृथक रूप से उपस्थित रहकर अपना अस्तित्व रचने वाली ऐसी कोई शिल्पकला, स्थापत्य अथवा चित्रांकन की परंपरा नहीं रहने दी, जिसमें लोक छूट गया हो।
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर दिए गए बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प का चयन कर लिखिए :
मैं तो शहर से या आदमियों से डरकर जंगल इसलिए भागा था कि मेरे सिर पर सींग निकल रहे थे और डर था कि किसी-न-किसी दिन किसी की नज़र मुझ पर ज़रूर पड़ जाएगी।
जंगल में मेरा पहला ही दिन था जब मैंने बरगद के पेड़ के नीचे एक शेर को बैठे हुए देखा। शेर का मुँह खुला हुआ था। शेर का खुला मुँह देखकर मेरा जो हाल होना था वही हुआ, यानी मैं डर के मारे एक झाड़ी के पीछे छिप गया।
मैंने देखा कि झाड़ी की ओट भी ग़ज़ब की चीज़ है। अगर झाड़ियाँ न हों तो शेर का मुँह-ही-मुँह हो और फिर उससे बच पाना कठिन हो जाए। कुछ देर बाद मैंने देखा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर एक लाइन से चले आ रहे हैं और शेर के मुँह में घुसे चले जा रहे हैं। शेर बिना हिले-डुले, बिना चबाए, जानवरों को गटकता जा रहा है। यह दृश्य देखकर मैं बेहोश होते-होते बचा।
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
नाम बड़ा है या रूप? पद पहले है या पदार्थ?
पदार्थ सामने है, पद नहीं सूझ रहा है।
मन व्याकुल हो गया।
स्मृतियों के पंख फैलाकर सुदूर अतीत के कोनों में झाँकता रहा।
सोचता हूँ इसमें व्याकुल होने की क्या बात है?
नाम में क्या रखा है – 'बाह्यद देस्सर इन द नेम'!
नाम की ज़रूरत ही हो तो सौ दिए जा सकते हैं।
सुस्मिता, गिरिकांता धरतीधकेल, पहाड़फोड़, पातालभेद!
पर मन नहीं मानता।
नाम इसलिए बड़ा नहीं है कि वह नाम है।
वह इसलिए बड़ा होता है कि उसे सामाजिक स्वीकृति मिली होती है।
रूप व्यक्ति सत्य है, नाम समाज सत्य।
नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज की मुहर लगी होती है।
आधुनिक शिक्षित लोग जिसे ‘सोशल सेन्शन’ कहते हैं।
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : बड़ी बहुरिया के संवाद का प्रत्येक शब्द उसके मन में काँटे की तरह चुभ रहा है --
'किसके भरोसे यहाँ हूँगी? एक नौकर था, वह भी कल भाग गया।
गाय खूंटे से बंधी भूखी-प्यासी हिनक रही है।
मैं किसके लिए इतना दुख झेलूँ?' हरगोबिन ने अपने पास बैठे हुए एक यात्री से पूछा,
‘क्यों भाई साहेब, थाना विंधपुर में डाकगाड़ी रुकती है या नहीं?’ यात्री ने मानो कुकुरकर कहा, “थाना विंधपुर में सभी गाड़ियाँ रुकती हैं।” हरगोबिन ने भाँप लिया, यह आदमी चिड़चिड़े स्वभाव का है, इससे कोई बातचीत नहीं जमेगी।
वह फिर बड़ी बहुरिया के संवाद को मन-ही-मन दोहराने लगा लेकिन, संवाद सुनाते समय वह अपने क्लेशों को कैसे संभाल सकेगा!
बड़ी बहुरिया संवाद कहते समय जहाँ-जहाँ रोई है, वहाँ वह रोयेगा।
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर दिए गए बहुविकल्पीय प्रश्नों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प का चयन कर लिखिए :
एक मिल मालिक के दिमाग में अजीब-अजीब ख़याल आया करते थे जैसे सारा संसार मिल हो जाएगा,
सारे लोग मज़दूर और वह उनका मालिक या मिल में और चीज़ों की तरह आदमी भी बनने लगेंगे,
तब मज़दूरी भी नहीं देनी पड़ेगी, बोरों-बोरों।
एक दिन उसके दिमाग में ख़याल आया कि अगर मज़दूरी के चार हाथ हो तो काम कितना तेज़ हो
और मुनाफ़ा कितना ज़्यादा। लेकिन यह काम करेगा कौन?
उसने सोचा, वैज्ञानिक करेंगे, ये किस मर्ज़ की दवा?
उसने यह काम करने के लिए बड़े वैज्ञानिकों को मोटी तनख्वाह पर नौकर रखा और वे नौकर भी बने।
कई साल तक शोध और प्रयोग करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि ऐसा असंभव है कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ।
मिल मालिक वैज्ञानिकों से नाराज़ हो गया।
उसने उन्हें नौकरी से निकाल दिया और अपने-आप इस काम को पूरा करने के लिए जुट गया।
निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए :
बिधि न सकेउ सहि मोर दुलारा। नीच बीचु जननी मिस पारा॥
यहउ कहत मोहि आजु न सोभा। अपनी समुझि साधु सुछि को भा॥
मातु मंदि मैं साधु सुचाली। उर अस आनत कोटि कुचाली॥
फरइ कि कोदव बालि सुसाली। मुकता प्रसव कि संबुक काली॥
सपनेहुँ दोसक लेसु न काहू। मोर अभागा उद्दीध अवगाहू॥
बिनु समुझें निज अघ परिपाकू। जारिउँ जायतें जतनि कहि काकू॥
हृदयँ हेरि हरोउँ सब ओरा। एकहि भाँति भलोँह भल मोरा॥
गुरु गोसाईं साहिब सिय रामू। लागत मोहि नेक परिणामू॥
‘सूरदास में सरलता भी है और व्यावहारिक चतुराई भी’ — ‘सूरदास की झोंपड़ी’ पाठ के आधार पर इस दृष्टि से उसके व्यक्तित्व का विश्लेषण कीजिए।
लेखक की मालवा-यात्रा के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि पहले लोगों में आत्मीयता और अपनत्व का भाव अधिक था। आज इसमें जो परिवर्तन आया है, उसके कारणों को स्पष्ट कीजिए।
‘गाँव में मूल्य परिवर्तन अधिक स्पष्ट रूप से पहचाना जाता है।’ ‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के आधार पर सटीक उदाहरण इस कथन की पुष्टि कीजिए।
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
हर की पौड़ी पर साँझ कुछ अलग रंग में उतरती है। दीया-बाती का समय या कह लो आरती की बेला। पाँच बजे जो फूलों के दोने एक-एक रुपए के बिक रहे थे, इस वक्त दो-दो के हो गए हैं। भक्तों को इससे कोई शिकायत नहीं। इतनी बड़ी-बड़ी मनोकामना लेकर आए हुए हैं। एक-दो रुपए का मुँह थोड़े ही देखना है। गंगा सभा के स्वयंसेवक खाकी वर्दी में मस्तेदी से घूम रहे हैं। वे सबको सीढ़ियों पर बैठने की प्रार्थना कर रहे हैं। शांत होकर बैठिए, आरती शुरू होने वाली है। कुछ भक्तों ने स्पेशल आरती बोल रखी है। स्पेशल आरती यानी एक सौ एक या एक सौ इक्यावन रुपए वाली। गंगा-तट पर हर छोटे-बड़े मंदिर पर लिखा है — ‘गंगा जी का प्राचीन मंदिर।’ पंडितगण आरती के इंतज़ाम में व्यस्त हैं। पीतल की नीलांजलि में सहस्त्र बातियाँ घी में भिगोकर रखी हुई हैं।