निम्नलिखित पाठ्य काव्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कीजिए :
"मुझ भाग्यहीन की तू संबल
युग वर्ष बाद जब हुई विकल
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!
हो इसी धर्म पर वज्रपात
यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
इस पथ पर, मेरे कार्य सकल
हो भ्रष्ट शिथिल के-से शरतल!
कन्ये, गत कर्मों का अर्पण
कर, करता मैं तेरा तर्पण!"
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
वृद्धाएँ धरती का नमक हैं,
किसी ने कहा था!
जो घर में हो कोई वृद्धा –
खाना ज्यादा अच्छा पकता है,
परदे-पेटिकोट और पायजामे भी दर्जी और
फ़ूफ़ाओं के
मुहताज नहीं रहते,
सजा-धजा रहता है घर का हर कमरा,
बच्चे ज़्यादा अच्छा पलते हैं,
उनकी नन्हीं-मुन्नी उल्टियाँ सँभालती
जगती हैं वे रात-भर,
घुल जाती हैं बच्चों के सपनों में
हिमालय-विमालय की अटल कंदराओं की
दिव्यवर्णी-दिव्यगंधी जड़ी-बूटियाँ और
फूल-वूल!
उनके ही संग-साथ से भाषा में बच्चों की
आ जाती है एक अनजव कोंपल
मुहावरों, मिथकों, लोकोक्तियों,
लोकगीतों, लोकगाथाओं और कथा-समयों की।
उनके ही दम से
अतल कूप खुद जाते हैं बच्चों के मन में
आदिम स्मृतियों के।
रहती हैं बुढ़ुआँ, घर में रहती हैं
लेकिन ऐसे जैसे अपने होने की खातिर हों
क्षमाप्रार्थी
– लोगों के आते ही बैठक से उठ जातीं,
छुप-छुपकर रहती हैं छाया-सी, माया-सी!
पति-पत्नी जब भी लड़ते हैं उनको लेकर
कि तुम्हारी माँ ने दिया क्या, किया क्या–
कुछ देर वे करती हैं अनसुना,
कोशिश करती हैं कुछ पढ़ने की,
बाद में टहलने लगती हैं,
और सोचती हैं बेचैनी से – ‘गाँव गए बहुत दिन हुए!’
उनके बस यह सोचने-भर से
जादू से घर में सब हो जाता है ठीक-ठाक,
सब कहते हैं, ‘अरे, अभी कहाँ जाओगी,
अभी तो नहीं जाना है बाहर, बच्चों को रखेगा
कौन?’
कपड़ों की छाती जब फटती है –
खुल जाती है उनकी उपयोगिता।
घर घर चीर रचा सब काहूँ। मोर रूप रंग ले गा नाहूँ॥
पलटी न बहुआ गा जो बिछाई। अबहूँ फिरे फिरे रंग साई॥
सियरी अगिनि बिसहनि हिय जारा। सुलगी सुलगी दाहै भै छारा॥
यह दुख दाध न जाने कंतू। जोबन जनम करे भरमंतू॥
‘जब मन दुःखी होता है तो सुंदरता भी हमें अपनी ओर आकृष्ट नहीं कर पाती।’ विद्यापति रचित ‘पद’ के आधार पर सिद्ध कीजिए।
“सरोज–स्मृति” कविता एक भाग्यहीन पिता के पुत्री के प्रति कुछ न कर पाने की व्यथा है।
इस कथन की पुष्टि कीजिए।
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
कल थे कुछ हम बन गए आज अजनबी हैं,
सब द्वार बंद, टूटे संबंध पुराने हैं।
हम सोच रहे यह कैसा नया समाज बना
जब अपने ही घर में हुए हम बिछाने हैं।
है आधी रात अर्थ जग पड़ा अंधेरे में,
सुख की दुनिया सोती, रंगों के घेरे में,
पर दुःख का इंसानी दीपक जलकर कहता
अब ज्यादा देर नहीं है, नए सवेरे में।
हम जीवन की मिट्टी में मिले सितारे हैं
हम राख नहीं हैं राख ढके अंगारे हैं।
जो अग्नि छिपा रखी है हमने गलियों से
हर बार धरा पर उसने प्रलय उतारे हैं।
‘सूरदास में सरलता भी है और व्यावहारिक चतुराई भी’ — ‘सूरदास की झोंपड़ी’ पाठ के आधार पर इस दृष्टि से उसके व्यक्तित्व का विश्लेषण कीजिए।
लेखक की मालवा-यात्रा के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि पहले लोगों में आत्मीयता और अपनत्व का भाव अधिक था। आज इसमें जो परिवर्तन आया है, उसके कारणों को स्पष्ट कीजिए।
‘गाँव में मूल्य परिवर्तन अधिक स्पष्ट रूप से पहचाना जाता है।’ ‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के आधार पर सटीक उदाहरण इस कथन की पुष्टि कीजिए।
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
हर की पौड़ी पर साँझ कुछ अलग रंग में उतरती है। दीया-बाती का समय या कह लो आरती की बेला। पाँच बजे जो फूलों के दोने एक-एक रुपए के बिक रहे थे, इस वक्त दो-दो के हो गए हैं। भक्तों को इससे कोई शिकायत नहीं। इतनी बड़ी-बड़ी मनोकामना लेकर आए हुए हैं। एक-दो रुपए का मुँह थोड़े ही देखना है। गंगा सभा के स्वयंसेवक खाकी वर्दी में मस्तेदी से घूम रहे हैं। वे सबको सीढ़ियों पर बैठने की प्रार्थना कर रहे हैं। शांत होकर बैठिए, आरती शुरू होने वाली है। कुछ भक्तों ने स्पेशल आरती बोल रखी है। स्पेशल आरती यानी एक सौ एक या एक सौ इक्यावन रुपए वाली। गंगा-तट पर हर छोटे-बड़े मंदिर पर लिखा है — ‘गंगा जी का प्राचीन मंदिर।’ पंडितगण आरती के इंतज़ाम में व्यस्त हैं। पीतल की नीलांजलि में सहस्त्र बातियाँ घी में भिगोकर रखी हुई हैं।