Question:

निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : बड़ी बहुरिया के संवाद का प्रत्येक शब्द उसके मन में काँटे की तरह चुभ रहा है -- 
'किसके भरोसे यहाँ हूँगी? एक नौकर था, वह भी कल भाग गया। 
गाय खूंटे से बंधी भूखी-प्यासी हिनक रही है। 
मैं किसके लिए इतना दुख झेलूँ?' हरगोबिन ने अपने पास बैठे हुए एक यात्री से पूछा, 
‘क्यों भाई साहेब, थाना विंधपुर में डाकगाड़ी रुकती है या नहीं?’ यात्री ने मानो कुकुरकर कहा, “थाना विंधपुर में सभी गाड़ियाँ रुकती हैं।” हरगोबिन ने भाँप लिया, यह आदमी चिड़चिड़े स्वभाव का है, इससे कोई बातचीत नहीं जमेगी। 
वह फिर बड़ी बहुरिया के संवाद को मन-ही-मन दोहराने लगा लेकिन, संवाद सुनाते समय वह अपने क्लेशों को कैसे संभाल सकेगा! 
बड़ी बहुरिया संवाद कहते समय जहाँ-जहाँ रोई है, वहाँ वह रोयेगा।

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सप्रसंग व्याख्या करते समय संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या और निष्कर्ष की स्पष्ट रूपरेखा जरूर बनाएँ।
Updated On: Jul 22, 2025
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Solution and Explanation

संदर्भ:
यह गद्यांश प्रसिद्ध कहानी ‘बड़े भाई साहब’ के समान मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी हुई एक कथा का अंश है, जिसमें बड़ी बहरिया के संवादों के माध्यम से उसके जीवन की करुण सच्चाई प्रस्तुत की गई है।

प्रसंग:
बड़ी बहरिया का बेटा नौकर था, जो काम छोड़कर चला गया। इस कारण वह अकेली और असहाय हो गई। भूखी-प्यासी गाय की चिंता, भविष्य की अनिश्चितता, और भावनात्मक अवलंबन छिन जाने का दर्द उसके संवादों से झलकता है।

व्याख्या:
बड़ी बहरिया के संवाद ‘किसके भरोसे यहाँ रुऊंगी?’ उसके असहाय जीवन की पीड़ा को दर्शाते हैं। बेटा, जो एकमात्र सहारा था, उसका चला जाना उसके जीवन की रीढ़ तोड़ देता है। वह गाय की चिंता करती है, जो बंधी है, भूखी है और उसे पानी भी नहीं मिला। यह गाय एक प्रतीक बन जाती है उसकी अपनी स्थिति का—बिना देखभाल, बिना सहारे।
हरगोबिन और यात्री का संवाद भी सामाजिक यथार्थ को दर्शाता है, जहाँ एक अजनबी की छोटी-सी बात भी किसी के जीवन की दिशा तय कर सकती है।
हरगोबिन को विश्वास हो जाता है कि यात्री संवेदनशील नहीं है, और इसलिए वह संवाद सुनाने के लिए किसी अपने को ही चुनता है। यह संवाद उसकी आत्मीयता की आवश्यकता को दर्शाता है।

निष्कर्ष:
यह गद्यांश ग्रामीण जीवन की असुरक्षा, अकेलेपन और मानसिक अवसाद को सशक्त रूप में प्रस्तुत करता है। बड़ी बहरिया का जीवन केवल उसकी कथा नहीं, बल्कि समाज के उन लाखों असहाय वृद्धों की पीड़ा है, जिनकी पुकार कोई नहीं सुनता।
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