List of top Hindi Elective Questions asked in CBSE Class Twelve Board Exam

निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

कहते हैं, पर्वत शोभा-निकेतन होते हैं। फिर हिमालय का तो कहना ही क्या! 
पूर्व और अपर समुद्र-महौदधि और रत्नाकर – दोनों को दोनों भुजाओं से थामता हुआ 
हिमालय ‘पृथ्वी का मानदंड’ कहा जाए तो गलत क्या है? कालिदास ने ऐसा ही कहा था। 
इसी के पाद-देश में यह श्रृंखला दूर तक लोटी हुई है, लोग इसे शिवालिक श्रृंखला कहते हैं। 
‘शिवालिक’ का क्या अर्थ है? ‘शिवालिक’ या शिव के जटाजूट का निचला हिस्सा तो नहीं है। 
लगता तो ऐसा ही है। शिव की लटियायी जटा ही इतनी सूखी, नीरस और कठोर हो सकती है। 
वैसे, अलकनंदा का स्रोत यहाँ से काफी दूरी पर है, लेकिन शिव का अलक तो दूर-दूर तक 
छितराया ही रहता होगा। संपूर्ण हिमालय को देखकर तो किसी के मन में समाधिस्थ महादेव की 
मूर्ति स्पष्ट हुई होगी।

निम्नलिखित पंक्तियों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

“हरगोविन भाई, तुमको एक संवाद ले जाना है। आज ही। बोलो, जाओगे न?” 
“कहाँ?” 
“मेरी माँ के पास।” 
हरगोविन बड़ी बहुरिया की छलछलाई आँखों में डूब गया, “कहिए, क्या संवाद है?” 
संवाद सुनाते समय बड़ी बहुरिया सिसकने लगी। हरगोविन की आँखें भी भर आईं। 
बड़ी हवेली की लक्ष्मी को पहली बार इस तरह सिसकते देखा है हरगोविन ने। 
वह बोला, “बड़ी बहुरिया, दिल को कड़ा कीजिए।” 
“और कितना कड़ा करूँ दिल?... माँ से कहना, मैं भाई-भाभियों की नौकरी करके पेट पालूँगी। 
बच्चों की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी, लेकिन यहाँ अब नहीं... अब नहीं रह सकूँगी। 
कहना, यदि माँ मुझे यहाँ से नहीं ले जाएगी तो मैं किसी दिन गढ़ा बाँधकर पोखरे में डूब मरूँगी... 
बघेला-साग खाकर कब तक जीऊँ? किसलिए... किसके लिए?”

निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर दिए गए बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर के लिए उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए :

मेरे पिताजी फ़ारसी के अच्छे ज्ञाता और पुरानी हिंदी कविता के बड़े प्रेमी थे। फ़ारसी कवियों की उक्तियों को हिंदी कवियों की उक्तियों के साथ मिलाने में उन्हें बड़ा आनंद आता था। वे रात को प्रायः रामचरितमानस और रामचंद्रिका, घर के सब लोगों को एकत्र करके बड़े चिन्ताशील ढंग से पढ़ा करते थे। आधुनिक हिंदी-साहित्य में भारतेंदु जी के नाटक उन्हें बहुत प्रिय थे। उन्हें भी वे कभी-कभी सुनाया करते थे। जब उनकी बदली हमीरपुर ज़िले की राठ तहसील से मिर्जापुर हुई तब मेरी अवस्था आठ वर्ष की थी। उसके पहले ही से भारतेंदु के संबंध में एक अनुपम मधुर भावना मेरे मन में जगी रहती थी। 'सत्य हरिश्चंद्र' नाटक के नायक राजा हरिश्चंद्र और कवि हरिश्चंद्र में मेरी बाल–बुद्धि कोई भेद नहीं कर पाती थी।