List of top Questions asked in CBSE CLASS XII

निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : 
भारतेन्दु-मंडल की किसी सजीव स्मृति के प्रति मेरी कितनी उत्कंठा रही होगी, यह अनुमान करने की बात है। मैं नगर से बाहर रहता था। एक दिन बालकों की मंडली जोड़ी गई। जो चौधरी साहब के मकान से परिचित थे, वे अगुवा हुए। मील डेढ़ मील का सफर तय हुआ। पत्थर के एक बड़े मकान के सामने हम लोग जा खड़े हुए। नीचे का बरामदा खाली था। ऊपर का बरामदा सघन लताओं के जाल से आवृत्त था। बीच-बीच में खंबे और खुली जगह दिखाई पड़ती थी। उसी ओर देखने के लिए मुझसे कहा गया। कोई दिखाई न पड़ा। सड़क पर कई चक्कर लगे। कुछ देर पीछे एक लड़के ने ऊँगली से ऊपर की ओर इशारा किया। लता-प्रतान के बीच एक मूर्ति खड़ी दिखाई पड़ी। ....... बस, यही पहली झाँकी थी।

निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : 
किंतु यह भ्रम है... यह बाढ़ नहीं, पानी में डूबे धान के खेत हैं। अगर हम थोड़ी सी हिम्मत बटोरकर गाँव के भीतर चलें, तब वे औरतें दिखाई देंगी जो एक पाँव में झुकी हुई धान के पौधे छप-छप पानी में रोप रही हैं; सुंदर, सुघड़, धूप में चमकमारती काली रंगत और सिरों पर चटाई के किश्तीनुमा हैट, जो फ़ोटो या फ़िल्मों में देखे हुए वियतनामी या चीनी औरतों की याद दिलाते हैं। ज़रा-सी आहट पाते ही वे एक साथ सिर उठाकर चौकी हुई निगाहों से हमें देखती हैं — बिल्कुल उन युवा हिरणियों की तरह, जिन्हें मैंने एक बार कान्हा के वन्यस्थल में देखा था। किंतु वे डरती नहीं, भागती नहीं, सिर्फ़ विस्मय से मुस्कराती हैं और फिर सिर झुकाकर अपने काम में डूब जाती हैं... यह सम्पूर्ण दृश्य इतना साफ़ और सजीव है — अपनी स्वच्छ मासूमियत में इतना संपूर्ण और शाश्वत — कि एक क्षण के लिए विश्वास नहीं होता।

निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर दिए गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प का चयन कर लिखिए :
“नहीं मायाजी! ज़मीन-जायदाद अभी भी कुछ कम नहीं। जो है, वही बहुत है। टूट भी गई है, है तो आखिर बड़ी हवेली ही। ‘समाँन’ नहीं है, वह बात ठीक है। मगर, बड़ी बुढ़िया का तो सारा गाँव ही परिवार है। हमारे गाँव की लक्ष्मी है बड़ी बुढ़िया। ... गाँव की लक्ष्मी गाँव को छोड़कर शहर कैसे जाएगी? अरे, देवर लोग हर बार आकर ले जाने की ज़िद करते हैं।”
बूढ़ी माता ने अपने हाथ हरगोबिन को जलपान लाकर दिया, “पहले थोड़ा जलपान कर लो, बबुआ!”
जलपान करते समय हरगोबिन को लगा, बड़ी बुढ़िया दालान पर बैठी उसकी राह देख रही है — भूखी-प्यासी...। रात में भोजन करते समय भी बड़ी बुढ़िया मानो सामने आकर बैठ गई... कर्ज़-उधार अब कोई देता नहीं... एक पेट तो करना भी पालता है, लेकिन मैं?... माँ से कहना...!
हरगोबिन ने थाली की ओर देखा — दाल-भात, तीन किस्म की भाजी, घी, पापड़, अचार... बड़ी बुढ़िया बख्शा-साग़ा खलाकर खा रही होगी।
बूढ़ी माता ने कहा, “क्यों बबुआ, खाते क्यों नहीं?”
“मायाजी, पेटभर जलपान जो कर लिया है।”
“अरे, जवान आदमी तो पाँच बार जलपान करके भी एक थाल भात खाता है।”
हरगोबिन ने कुछ नहीं खाया। खाया नहीं गया।
संवेदना टकरा उठता है जैसे ‘अफर’ कर लेता है, किंतु हरगोबिन को नींद नहीं आ रही है... वह उसने क्या किया? क्या कर दिया? वह किसलिए आया था? वह खुद क्यों बोलता?... नहीं, नहीं, सुबह उठते ही वह बूढ़ी माता से बड़ी बुढ़िया को न भेजे जाने की सिफारिश करेगा... अक्षर-अक्षर॥