List of top Questions asked in CBSE Class X

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपर्वू र्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर लिखिए :

भारतीय चिंतन में स्वास्थ्य का अर्थ 'स्व' मेंस्थित होना है । दसरे शब्दों में एक आत्मस्वरूप व्य ू क्ति को स्वस्थ कहा जा सकता है । जीवन का आनंद लेने के लिए स्वस्थ रहने की आवश्यकता है । स्वास्थ्य व्यक्ति के व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन के लिए महत्वपर्णू र्णहै । समाज का एक उत्पादक सदस्य होने के नाते हमें मानसिक और शारीरिक क्रियाशील होने की आवश्यकता है । स्वास्थ्य मानसिकता में वे मनोवैज्ञानिक कारक आते हैंजो स्वास्थ्य को बनाए रखने और उत्तम करने में सहायक होते हैं। इन तत्वों की खोज करता है जो रोग की स्थिति पैदा करते हैं। हमारी जीवन शैली और सोचने एवं व्यवहार करने के तरीके लोगों के स्वास्थ्य स्तर में योगदान करते हैं। व्यायाम, पोषित भोजन तथा योग, ध्यान, धम्रपान ू जैसे दुर्व्यसनों में परिवर्तन से शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है । स्वास्थ्य शारीरिक और मानसिक कुशलता की अवस्था को कहते हैं। यह एक सकारात्मक अवस्था है । लोगों के व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन में स्वास्थ्य का कें दरीय स्थान है । आज की द ् ुनिया में लोगों के गुणवत्तापर्णू र्णजीवन को चारों ओर चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैजिसका परिणाम लोगों का गिरता स्वास्थ्य है । एक ओर बाहरी पर्यावरण बड़ी तेजी से बदल रहा है । इससे अनेक पर्यावरणीय तनावों से सफलतापर्वू र्वक निपटने की आवश्यकता है । सामाजिक संरचना में आए बदलाव जैसे परिवार और अन्य 1 सामाजिक संस्थाओं का विघटन, प्रतिस्पर्धा और उपभोक्तावादी संस्कृति ह्रास और अस्वस्थता को बढ़ावा प्रदान कर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपर्वू र्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर लिखिए :

क्रोध दुःख के चेतन कारण के साक्षात्कार या अनुमान से उत्पन्न होता है । साक्षात्कार के समय दुःख और उसके कारण के संबंध का परीक्षण आवश्यक है । तीन–चार महीने के बच्चे को कोई हाथ उठाकर मार 3 दे, तो उसने हाथ उठाते तो देखा है पर उसकी पीड़ा और उस हाथ उठाने से क्या संबंध है, यह वह नहीं जानता है । अतः वह के वल रोकर अपना दुःख मात्र प्रकट कर देता है । दुःख के कारण की स्पष्ट धारणा के बिना क्रोध का उदय नहीं होता । दुःख के सशक्त कारण पर प्रबल प्रभाव डालने में युक्त करवाने वाला मनोविकार होने के कारण क्रोध का आविर्भाव बहुत पहले देखा जाता है । शिशुअपनी माता की आकृति से परिचित हो जाने पर ज्यों ही यह जान जाता हैकि दध इसी से ू मिलता है, भखा होने पर वह ू उसे देखते ही अपने ग़म में कुछ क्रोध का आभास देने लगता है । सामाजिक जीवन में क्रोध की ज़रूरत बराबर पड़ती है । यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दसरों के द्वारा ू पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिन्तनशीलता का उपाय ही न कर सके गा । समाज मेंनिराशा और अत्याचार का बोलबाला बढ़ जाएगा । कोई मनुष्य किसी दुःख केलिए दो-चार प्रहार सहता है । यदि उसमें क्रोध का विकास नहीं हुआ है, तो वह के वल आह–ऊह करेगा, जिसका उस दुःख पर कोई प्रभाव नहीं । उस दुःख के हृदय मेंविवेक, दया आदि उत्पन्न करने में बहुत समय लगेगा । संसार किसी को इतना समय छोटे –छोटे कष्टों केलिए नहीं दे सकता ।