Question:

सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः । आतुरस्य भिषक् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः ।। 
 

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'जीवन सूत्रणि' पाठ के श्लोक सूक्ति के रूप में होते हैं। इनका अनुवाद करते समय ध्यान रखें कि अर्थ सरल और सारगर्भित हो, जो जीवन के लिए एक शिक्षा प्रदान करे।
Updated On: Nov 11, 2025
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Solution and Explanation

सन्दर्भ:
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के 'संस्कृत-परिचयिका' खण्ड के 'जीवन सूत्रणि' नामक पाठ से लिया गया है। यह श्लोक यक्ष और युधिष्ठिर संवाद का अंश है, जिसमें जीवन के लिए उपयोगी सूत्रों को बताया गया है।
हिन्दी में अनुवाद:
प्रदेश में रहने वाले (प्रवासी) का मित्र धन (या साथ चलने वाला समूह) होता है, घर पर रहने वाले का मित्र पत्नी होती है। रोगी का मित्र वैद्य (डॉक्टर) होता है और मरने वाले व्यक्ति का मित्र दान होता है।
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