Comprehension

निम्नलिखित पद्यांश पर आधारित सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए : गोरज बिराजै भाल लहलही बनमाल आगे गैयाँ पाछे ग्वाल गावै मृदु बानि री । तैसी धुनि बाँसुरी की मधुर मधुर जैसी, बंक चितवनि मंद-मंद मुसकानि री । कदम बिटप के निकट तटिनी के तट अटा चढ़ि चाहि पीत पट फहरानि री । रस बरसावैं तन-तपनि बुझावैं नैन, प्राननि रिझावै वह आवै रसखानि री।। 
 

Question: 1

उपर्युक्त पद्यांश का संदर्भ लिखिए ।

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संदर्भ लिखते समय कवि का नाम, कविता का शीर्षक और प्रसंग (कविता का मुख्य भाव) का उल्लेख अवश्य करें। इससे उत्तर पूर्ण और प्रभावशाली बनता है। कवि और शीर्षक को रेखांकित करना एक अच्छी प्रस्तुति मानी जाती है।
Updated On: Nov 10, 2025
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Solution and Explanation

प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के 'काव्य-खण्ड' में संकलित 'सवैये' शीर्षक से अवतरित है। यह कृष्ण-भक्ति शाखा के प्रमुख कवि रसखान द्वारा रचित है। इस सवैये में कवि ने संध्या के समय वन से लौटते हुए श्रीकृष्ण के मनमोहक रूप का सजीव चित्रण किया है।
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Question: 2

गोरज के बीच कृष्ण के सुन्दर रूप का सजीव चित्रण कवि ने किस प्रकार किया है ?

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किसी काव्यांश में सौंदर्य-चित्रण का उत्तर देते समय, कविता में प्रयुक्त विशिष्ट शब्दों और पंक्तियों का उल्लेख करते हुए बिंदुवार (bullet points) व्याख्या करना प्रभावी होता है। यह आपके उत्तर को संरचित और स्पष्ट बनाता है।
Updated On: Nov 10, 2025
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Solution and Explanation

कवि रसखान ने श्रीकृष्ण के सौन्दर्य का सजीव चित्रण करते हुए कहा है कि:

भाल पर गोरज: जब श्रीकृष्ण वन से लौट रहे हैं, तो गायों के खुरों से उड़ी धूल (गोरज) उनके मस्तक पर सुशोभित हो रही है।

वनमाला: उनके वक्षस्थल पर वन-पुष्पों की माला लहरा रही है।

मधुर संगीत: उनके आगे गायें और पीछे ग्वाल-बाल मधुर स्वर में गीत गाते हुए चल रहे हैं।

मनमोहक छवि: उनकी तिरछी चितवन और मंद-मंद मुस्कान अत्यंत आकर्षक है।

बाँसुरी की धुन: वे मधुर-मधुर ध्वनि में बाँसुरी बजा रहे हैं।

इस प्रकार, कवि ने दृश्य, श्रव्य और भाव-बिम्बों के माध्यम से श्रीकृष्ण के रूप-सौन्दर्य को जीवंत कर दिया है।
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Question: 3

पद्यांश के रेखाङ्कित अंश की व्याख्या कीजिए ।

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रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय, उस पंक्ति के पहले और बाद की पंक्तियों से उसका संबंध जोड़कर व्याख्या करें। इससे भाव अधिक स्पष्ट होता है। 'रसखानि' शब्द के दोहरे अर्थ (कवि का नाम और रस की खान) को उजागर करना उत्तर को और भी बेहतर बना देगा।
Updated On: Nov 10, 2025
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Solution and Explanation

रेखांकित अंश "प्राननि रिझावै वह आवै रसखानि री ।।" की व्याख्या इस प्रकार है:
एक गोपी अपनी सखी से कहती है कि हे सखी! रस की खान अर्थात् आनंद के सागर श्रीकृष्ण आ रहे हैं। उनका सौंदर्य ऐसा है जो रस की वर्षा कर रहा है, शरीर की तपन को शांत कर रहा है और नेत्रों को शीतलता प्रदान कर रहा है। उनका यह मनमोहक रूप प्राणों को भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है और उन्हें रिझा रहा है। इस पंक्ति में कवि रसखान ने अपना नाम भी巧妙ता से जोड़ते हुए श्रीकृष्ण के सौन्दर्य के प्रभाव का वर्णन किया है जो दर्शकों के तन, मन और प्राण तीनों को आनंदित कर देता है।
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