Question:

निम्नलिखित पद्यांश पर आधारित सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए : ऊधौ जाहु तुमहिं हम जाने। स्याम तुमहिं ह्याँ कौ नहिं पठयौ, तुम हौ बीच भुलाने।। ब्रज नारिनि सौं जोग कहत हौं, बात कहत न लजाने। बड़े लोग न विवेक तुम्हारे, ऐसे भए अयाने।। ... पद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए। 
 

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पद्य की व्याख्या करते समय पंक्तियों के शाब्दिक अर्थ के साथ-साथ उनके पीछे छिपे भाव, व्यंग्य और अलंकार को भी स्पष्ट करना चाहिए।
Updated On: Nov 10, 2025
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Solution and Explanation

चरण 1: रेखांकित अंश को समझना:
रेखांकित पंक्तियाँ हैं: "ब्रज नारिनि सौं जोग कहत हौं, बात कहत न लजाने। बड़े लोग न विवेक तुम्हारे, ऐसे भए अयाने।।" इसकी व्याख्या करनी है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
- व्याख्या: गोपियाँ उद्धव पर व्यंग्य करती हुई कहती हैं कि तुम हम ब्रज की स्त्रियों को योग का उपदेश दे रहे हो, तुम्हें ऐसी बातें कहते हुए लज्जा भी नहीं आती। तुम भले ही ज्ञानी हो, पर ऐसा लगता है कि तुम्हारे पास विवेक नहीं है और तुम बिल्कुल अज्ञानियों जैसा व्यवहार कर रहे हो।
- 'ब्रज नारिनि सौं जोग कहत हौं, बात कहत न लजाने।' - गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव! तुम हम ब्रज की भोली-भाली स्त्रियों से, जो प्रेम-मार्ग पर चलती हैं, योग-साधना की नीरस बातें कर रहे हो। क्या तुम्हें ऐसा अनुपयुक्त उपदेश देते हुए थोड़ी भी लज्जा नहीं आ रही?
- 'बड़े लोग न विवेक तुम्हारे, ऐसे भए अयाने।।' - वे आगे व्यंग्य करती हैं कि सुना है तुम बड़े ज्ञानी हो, परन्तु तुम्हारी बातें सुनकर लगता है कि तुम्हारे अंदर विवेक (भले-बुरे या उचित-अनुचित का ज्ञान) बिल्कुल भी नहीं है। तुम ऐसे अज्ञानी और नासमझ बन गए हो कि तुम्हें यह भी नहीं पता कि किससे क्या बात करनी चाहिए।
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