Comprehension

अबिगत गति कछु कहत न आवै । 
ज्यौं गूंगे मीठे फल कौ रस अंतरगत ही भावै । 
परम स्वाद सबही सु निरन्तर, अमित तोष उपजावै । 
मन-बानी कौ अगम-अगोचर, सो जानै जो पावै । 
रूप-रेख-गुन-जाति-जुगति-बिनु, निरालम्ब कित धावै । 
सब बिध अगम बिचारहिं तातै, सूर सगुन-पद गावै ।। 

 

Question: 1

उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।

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सन्दर्भ लिखते समय कवि का नाम, उनकी प्रमुख रचना का नाम और पाठ्य-पुस्तक में संकलित शीर्षक का स्पष्ट उल्लेख करें। पद्य का केंद्रीय भाव एक पंक्ति में लिखने से उत्तर और भी प्रभावशाली हो जाता है।
Updated On: Nov 10, 2025
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Solution and Explanation

Step 1: Understanding the Question:
प्रश्न में दिए गए पद्यांश का सन्दर्भ लिखने के लिए कहा गया है, जिसमें कवि का नाम और पाठ का शीर्षक बताना होता है।
Step 2: Identifying the Author and Text:
पद्यांश की अंतिम पंक्ति में 'सूर' शब्द का प्रयोग हुआ है, जो स्पष्ट रूप से कवि सूरदास की ओर संकेत करता है। यह पद उनकी प्रसिद्ध रचना 'सूरसागर' से लिया गया है और हमारी पाठ्य-पुस्तक में 'पद' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है।
Step 3: Writing the Context (सन्दर्भ):
प्रस्तुत पद्य भक्तिकाल की कृष्ण-भक्ति शाखा के श्रेष्ठ कवि सूरदास द्वारा रचित 'सूरसागर' नामक महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के काव्य-खण्ड में 'पद' शीर्षक के अन्तर्गत संगृहीत है। इस पद में सूरदास जी ने निराकार ब्रह्म की उपासना की कठिनाइयों को बताते हुए साकार ब्रह्म (श्रीकृष्ण) की भक्ति का समर्थन किया है।
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Question: 2

'अगम-अगोचर' से क्या तात्पर्य है ?

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जटिल शब्दों का अर्थ समझने के लिए उन्हें तोड़कर उनके मूल रूप को पहचानने का प्रयास करें। जैसे अगम (अ + गम) और अगोचर (अ + गोचर)।
Updated On: Nov 10, 2025
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Solution and Explanation

Step 1: Understanding the Question:
प्रश्न में 'अगम-अगोचर' शब्दों का अर्थ पूछा गया है।
Step 2: Analyzing the Words:
यह शब्द निराकार ब्रह्म के लिए प्रयुक्त हुआ है।
- अगम: इसका अर्थ है 'जहाँ पहुँचा न जा सके' या 'जो पहुँच से परे हो'।
- अगोचर: इसका अर्थ है 'जो इन्द्रियों द्वारा अनुभव न किया जा सके' (अ + गोचर, 'गो' का एक अर्थ इन्द्री भी है)।
Step 3: Final Answer:
'अगम-अगोचर' से तात्पर्य है कि निराकार ब्रह्म मन और वाणी से पहुँचा नहीं जा सकता (अगम) और उसे इन्द्रियों द्वारा देखा या अनुभव भी नहीं किया जा सकता (अगोचर)। वह हमारी पहुँच और ज्ञान से परे है।
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Question: 3

पद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
रेखांकित अंश: "ज्यौं गूंगे मीठे फल कौ रस अंतरगत ही भावै ।"

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व्याख्या करते समय दृष्टांत (उदाहरण) और सिद्धांत (मूल बात) के बीच के संबंध को स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है। यहाँ गूँगे व्यक्ति का उदाहरण निराकार ब्रह्म के आनंद को न बता पाने के सिद्धांत को सिद्ध करने के लिए दिया गया है।
Updated On: Nov 10, 2025
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Solution and Explanation

Step 1: Understanding the Question:
प्रश्न में दी गई रेखांकित पंक्ति की व्याख्या करने के लिए कहा गया है।
Step 2: Detailed Explanation:
प्रस्तुत पंक्ति में कवि सूरदास जी निराकार ब्रह्म की भक्ति से मिलने वाले आनंद की अनिर्वचनीयता (जिसे शब्दों में व्यक्त न किया जा सके) को एक दृष्टांत के माध्यम से समझा रहे हैं।
व्याख्या: सूरदास जी कहते हैं कि निराकार ब्रह्म की स्थिति का वर्णन करना अत्यंत कठिन है। उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। जिस प्रकार कोई गूँगा व्यक्ति मीठे फल के रस का स्वाद तो लेता है और उसे वह स्वाद अपने हृदय में (अंतरगत ही) बहुत अच्छा भी लगता है, परन्तु अपनी वाणी न होने के कारण वह उस आनंद को दूसरों के सामने व्यक्त नहीं कर सकता। वह केवल उस आनंद को स्वयं ही अनुभव कर सकता है। ठीक उसी प्रकार, जो भक्त निराकार ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है, वह उसके आनंद को अनुभव तो करता है परन्तु उसे वाणी से बता नहीं सकता।
Step 3: Conclusion:
अतः, इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि निराकार ब्रह्म की अनुभूति एक व्यक्तिगत और आंतरिक अनुभव है, जिसे शब्दों में पिरोना असंभव है।
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