List of top Questions asked in Maharashtra Class X Board

निम्नलिखित पिठत गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए : आज फिर उसे साक्षात्कार के लिए जाना है। अब तक देशप्रेम, नैतिकता, शिष्टाचार, ईमानदारी पर अपने तर्कपूर्ण विचार बड़े विश्वास से रखता आया था लेकिन इसके बावजूद उसके हिस्से में सिर्फ असफलता ही आई थी। 
साक्षात्कार के लिए उपस्थित प्रतिनिधि मंडल में से एक अधिकारी ने पूछा- "भ्रष्टाचार के बारे में आपकी क्या राय है ?" 
"भ्रष्टाचार एक ऐसा कीड़ा है जो देश को घुन की तरह खा रहा है। इसने सारी सामाजिक व्यवस्था को चिंताजनक स्थिति में पहुँचा दिया है। सच कहा जाए तो यह देश के लिए कलंक है.........।" अधिकारियों के चेहरे पर हलकी-सी मुसकान और उत्सुकता छा गई। उसके तर्क में उन्हें रुचि महसूस होने लगी। दूसरे अधिकारी ने प्रश्न किया-"रिश्वत को आप क्या मानते हैं ?" 
"यह भ्रष्टाचार की बहन है जैसे विशेष अवसरों पर हम अपने प्रियजनों, परिचितों, मित्रों को उपहार देते हैं। 

(2) "भ्रष्टाचार एक कलंक" विषय पर 25 से 30 शब्दों में अपने विचार लिखिए। 
 

निम्नलिखित पिठत गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए : आज फिर उसे साक्षात्कार के लिए जाना है। अब तक देशप्रेम, नैतिकता, शिष्टाचार, ईमानदारी पर अपने तर्कपूर्ण विचार बड़े विश्वास से रखता आया था लेकिन इसके बावजूद उसके हिस्से में सिर्फ असफलता ही आई थी। 
साक्षात्कार के लिए उपस्थित प्रतिनिधि मंडल में से एक अधिकारी ने पूछा- "भ्रष्टाचार के बारे में आपकी क्या राय है ?" 
"भ्रष्टाचार एक ऐसा कीड़ा है जो देश को घुन की तरह खा रहा है। इसने सारी सामाजिक व्यवस्था को चिंताजनक स्थिति में पहुँचा दिया है। सच कहा जाए तो यह देश के लिए कलंक है.........।" अधिकारियों के चेहरे पर हलकी-सी मुसकान और उत्सुकता छा गई। उसके तर्क में उन्हें रुचि महसूस होने लगी। दूसरे अधिकारी ने प्रश्न किया-"रिश्वत को आप क्या मानते हैं ?" 
"यह भ्रष्टाचार की बहन है जैसे विशेष अवसरों पर हम अपने प्रियजनों, परिचितों, मित्रों को उपहार देते हैं। 
(1) कृति पूर्ण कीजिए : 
 

निम्नलिखित पिठत पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए : घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा ॥ 
दामिनि दमक रहहिं घन माहीं। खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं ॥ 
बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ ॥ 
बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसे ॥ 
छुद्र नदी भरि चली तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई ॥ 
भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहिं माया लपटानी ॥ 
समिटि-समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा ॥ 
सरिता जल जलनिधि महुँ जाई। होई अचल जिमि जिव हरि पाई ॥ 
(1)उत्तर लिखिए : 
\[\begin{array}{|l|l|l|} \hline (i) & गरजने वाले & - \dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots \\ \text{(ii)} & \text{चमकने वाली} & \text{- \dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots} \\ \hline \text{(iii)} & \text{बूँद के आघात सहने वाले} & \text{- \dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots} \\ \hline \text{(iv)} & \text{दुष्ट के वचन सहने वाले} & \text{- \dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots} \\ \hline \end{array}\]
 

निम्नलिखित अपिठत गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए : परोपकार ही मानवता है, जैसा कि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है-'वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।' केवल अपने दुख-सुख की चिंता करना मानवता नहीं, पशुता है। परोपकार ही मानव को पशुता से सदय बनाता है। वस्तुतः निःस्वार्थ भावना से दूसरों का हित साधना ही परोपकार है। मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार परोपकार कर सकता है। दूसरों के प्रति सहानुभूति करना ही परोपकार है और सहानुभूति किसी भी रूप में प्रकट की जा सकती है। किसी निर्धन की आर्थिक सहायता करना अथवा किसी असहाय की रक्षा करना परोपकार के रूप हैं। किसी पागल अथवा रोगी की सेवा-शुश्रूषा करना अथवा भूखे को अन्नदान करना भी परोपकार है। किसी को संकट से बचा लेना, किसी को कुमार्ग से हटा देना, किसी दुखी-निराश को सांत्वना देना- ये सब परोपकार के ही रूप हैं। कोई भी कार्य, जिससे किसी को लाभ पहुँचता है, परोपकार है, जो अपनी सामर्थ्य के अनुसार विभिन्न रूपों में किया जा सकता है। 

(2) 'मानवता ही सच्चा धर्म है' विषय पर 25 से 30 शब्दों में अपने विचार लिखिए। 
 

निम्नलिखित अपिठत गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए : परोपकार ही मानवता है, जैसा कि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है-'वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।' केवल अपने दुख-सुख की चिंता करना मानवता नहीं, पशुता है। परोपकार ही मानव को पशुता से सदय बनाता है। वस्तुतः निःस्वार्थ भावना से दूसरों का हित साधना ही परोपकार है। मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार परोपकार कर सकता है। दूसरों के प्रति सहानुभूति करना ही परोपकार है और सहानुभूति किसी भी रूप में प्रकट की जा सकती है। किसी निर्धन की आर्थिक सहायता करना अथवा किसी असहाय की रक्षा करना परोपकार के रूप हैं। किसी पागल अथवा रोगी की सेवा-शुश्रूषा करना अथवा भूखे को अन्नदान करना भी परोपकार है। किसी को संकट से बचा लेना, किसी को कुमार्ग से हटा देना, किसी दुखी-निराश को सांत्वना देना- ये सब परोपकार के ही रूप हैं। कोई भी कार्य, जिससे किसी को लाभ पहुँचता है, परोपकार है, जो अपनी सामर्थ्य के अनुसार विभिन्न रूपों में किया जा सकता है। 
(1) कोष्ठक में दिए गए शब्दों में से उचित शब्द चुनकर तालिका पूर्ण कीजिए : 
 

(सांत्वना, पशुता, सेवा-शुश्रूषा, मानवता, सामर्थ्य)

\[\begin{array}{|l l l|} \hline (1) & परोपकार ही & \dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots \\ \text{(2)} & \text{केवल अपने सुख-दुख की चिंता करना} & \text{\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots} \\ \hline \text{(3)} & \text{पागल अथवा रोगी की} & \text{\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots} \\ \hline \text{(4)} & \text{दुखी-निराश को} & \text{\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots} \\ \hline \end{array}\]
 

निम्नलिखित पिठत गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए :

हमने अपने जीवन में बाबू जी के रहते अभाव नहीं देखा। उनके न रहने के बाद जो कुछ मुझपर बीता, वह एक दूसरी तरह का अभाव था कि मुझे बैंक की नौकरी करनी पड़ी। लेकिन उससे पूर्व बाबू जी के रहते मैं जब जन्मा था तब वे उत्तर प्रदेश में पुलिस मंत्री थे। उस समय गृहमंत्री को पुलिस मंत्री कहा जाता था। इसलिए मैं हमेशा कल्पना किया करता था कि हमारे पास ये छोटी गाड़ी नहीं, बड़ी आलीशान गाड़ी होनी चाहिए। बाबू जी प्रधानमंत्री हुए तो वहाँ जो गाड़ी थी वह थी, इंपाला शेवरलेट। उसे देख-देख बड़ा जी करता कि मौका मिले और उसे चलाऊँ। प्रधानमंत्री का लड़का था। कोई मामूली बात नहीं थी। सोचते-विचारते, कल्पना की उड़ान भरते एक दिन मौका मिल गया। धीरे-धीरे हिम्मत भी खुल गई थी ऑर्डर देने की। हमने बाबू जी के निजी सचिव से कहा- "सहाय साहब, जरा ड्राइवर से कहिए, इंपाला लेकर रेजिडेंस की तरफ आ जाएँ।"
दो मिनट में गाड़ी आकर दरवाजे पर लग गई। अनिल भैया ने कहा- "मैं तो इसे चलाऊँगा नहीं। तुम्हीं चलाओ।"
मैं आगे बढ़ा। ड्राइवर से चाभी माँगी। बोला-"तुम बैठो, आराम करो, हम लोग वापस आते हैं अभी।"

(4) 'सादा जीवन, उच्च विचार' इस विषय पर 25 से 30 शब्दों में अपने विचार लिखिए। 
 

निम्नलिखित पिठत गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए :

हमने अपने जीवन में बाबू जी के रहते अभाव नहीं देखा। उनके न रहने के बाद जो कुछ मुझपर बीता, वह एक दूसरी तरह का अभाव था कि मुझे बैंक की नौकरी करनी पड़ी। लेकिन उससे पूर्व बाबू जी के रहते मैं जब जन्मा था तब वे उत्तर प्रदेश में पुलिस मंत्री थे। उस समय गृहमंत्री को पुलिस मंत्री कहा जाता था। इसलिए मैं हमेशा कल्पना किया करता था कि हमारे पास ये छोटी गाड़ी नहीं, बड़ी आलीशान गाड़ी होनी चाहिए। बाबू जी प्रधानमंत्री हुए तो वहाँ जो गाड़ी थी वह थी, इंपाला शेवरलेट। उसे देख-देख बड़ा जी करता कि मौका मिले और उसे चलाऊँ। प्रधानमंत्री का लड़का था। कोई मामूली बात नहीं थी। सोचते-विचारते, कल्पना की उड़ान भरते एक दिन मौका मिल गया। धीरे-धीरे हिम्मत भी खुल गई थी ऑर्डर देने की। हमने बाबू जी के निजी सचिव से कहा- "सहाय साहब, जरा ड्राइवर से कहिए, इंपाला लेकर रेजिडेंस की तरफ आ जाएँ।"
दो मिनट में गाड़ी आकर दरवाजे पर लग गई। अनिल भैया ने कहा- "मैं तो इसे चलाऊँगा नहीं। तुम्हीं चलाओ।"
मैं आगे बढ़ा। ड्राइवर से चाभी माँगी। बोला-"तुम बैठो, आराम करो, हम लोग वापस आते हैं अभी।" 

(3)(ii) गद्यांश में उल्लेखित शब्दयुग्म ढूँढ़कर लिखिए : 
 

निम्नलिखित पिठत गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए :

हमने अपने जीवन में बाबू जी के रहते अभाव नहीं देखा। उनके न रहने के बाद जो कुछ मुझपर बीता, वह एक दूसरी तरह का अभाव था कि मुझे बैंक की नौकरी करनी पड़ी। लेकिन उससे पूर्व बाबू जी के रहते मैं जब जन्मा था तब वे उत्तर प्रदेश में पुलिस मंत्री थे। उस समय गृहमंत्री को पुलिस मंत्री कहा जाता था। इसलिए मैं हमेशा कल्पना किया करता था कि हमारे पास ये छोटी गाड़ी नहीं, बड़ी आलीशान गाड़ी होनी चाहिए। बाबू जी प्रधानमंत्री हुए तो वहाँ जो गाड़ी थी वह थी, इंपाला शेवरलेट। उसे देख-देख बड़ा जी करता कि मौका मिले और उसे चलाऊँ। प्रधानमंत्री का लड़का था। कोई मामूली बात नहीं थी। सोचते-विचारते, कल्पना की उड़ान भरते एक दिन मौका मिल गया। धीरे-धीरे हिम्मत भी खुल गई थी ऑर्डर देने की। हमने बाबू जी के निजी सचिव से कहा- "सहाय साहब, जरा ड्राइवर से कहिए, इंपाला लेकर रेजिडेंस की तरफ आ जाएँ।"
दो मिनट में गाड़ी आकर दरवाजे पर लग गई। अनिल भैया ने कहा- "मैं तो इसे चलाऊँगा नहीं। तुम्हीं चलाओ।"
मैं आगे बढ़ा। ड्राइवर से चाभी माँगी। बोला-"तुम बैठो, आराम करो, हम लोग वापस आते हैं अभी।" 

(3)(i) गद्यांश में उल्लेखित विलोम शब्द की जोड़ी ढूँढ़कर लिखिए : 
 

निम्नलिखित पिठत गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए :

हमने अपने जीवन में बाबू जी के रहते अभाव नहीं देखा। उनके न रहने के बाद जो कुछ मुझपर बीता, वह एक दूसरी तरह का अभाव था कि मुझे बैंक की नौकरी करनी पड़ी। लेकिन उससे पूर्व बाबू जी के रहते मैं जब जन्मा था तब वे उत्तर प्रदेश में पुलिस मंत्री थे। उस समय गृहमंत्री को पुलिस मंत्री कहा जाता था। इसलिए मैं हमेशा कल्पना किया करता था कि हमारे पास ये छोटी गाड़ी नहीं, बड़ी आलीशान गाड़ी होनी चाहिए। बाबू जी प्रधानमंत्री हुए तो वहाँ जो गाड़ी थी वह थी, इंपाला शेवरलेट। उसे देख-देख बड़ा जी करता कि मौका मिले और उसे चलाऊँ। प्रधानमंत्री का लड़का था। कोई मामूली बात नहीं थी। सोचते-विचारते, कल्पना की उड़ान भरते एक दिन मौका मिल गया। धीरे-धीरे हिम्मत भी खुल गई थी ऑर्डर देने की। हमने बाबू जी के निजी सचिव से कहा- "सहाय साहब, जरा ड्राइवर से कहिए, इंपाला लेकर रेजिडेंस की तरफ आ जाएँ।"
दो मिनट में गाड़ी आकर दरवाजे पर लग गई। अनिल भैया ने कहा- "मैं तो इसे चलाऊँगा नहीं। तुम्हीं चलाओ।"
मैं आगे बढ़ा। ड्राइवर से चाभी माँगी। बोला-"तुम बैठो, आराम करो, हम लोग वापस आते हैं अभी।" 

उत्तर लिखिए : 
(i) लेखक यह कल्पना किया करते थे 
(ii) लेखक के जन्म के समय बाबू जी उत्तर प्रदेश में 
 

निम्नलिखित पिठत गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए :

हमने अपने जीवन में बाबू जी के रहते अभाव नहीं देखा। उनके न रहने के बाद जो कुछ मुझपर बीता, वह एक दूसरी तरह का अभाव था कि मुझे बैंक की नौकरी करनी पड़ी। लेकिन उससे पूर्व बाबू जी के रहते मैं जब जन्मा था तब वे उत्तर प्रदेश में पुलिस मंत्री थे। उस समय गृहमंत्री को पुलिस मंत्री कहा जाता था। इसलिए मैं हमेशा कल्पना किया करता था कि हमारे पास ये छोटी गाड़ी नहीं, बड़ी आलीशान गाड़ी होनी चाहिए। बाबू जी प्रधानमंत्री हुए तो वहाँ जो गाड़ी थी वह थी, इंपाला शेवरलेट। उसे देख-देख बड़ा जी करता कि मौका मिले और उसे चलाऊँ। प्रधानमंत्री का लड़का था। कोई मामूली बात नहीं थी। सोचते-विचारते, कल्पना की उड़ान भरते एक दिन मौका मिल गया। धीरे-धीरे हिम्मत भी खुल गई थी ऑर्डर देने की। हमने बाबू जी के निजी सचिव से कहा- "सहाय साहब, जरा ड्राइवर से कहिए, इंपाला लेकर रेजिडेंस की तरफ आ जाएँ।"
दो मिनट में गाड़ी आकर दरवाजे पर लग गई। अनिल भैया ने कहा- "मैं तो इसे चलाऊँगा नहीं। तुम्हीं चलाओ।"
मैं आगे बढ़ा। ड्राइवर से चाभी माँगी। बोला-"तुम बैठो, आराम करो, हम लोग वापस आते हैं अभी।" 

(1) कृति पूर्ण कीजिए : 

(ii)

 

निम्नलिखित पिठत गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए :

हमने अपने जीवन में बाबू जी के रहते अभाव नहीं देखा। उनके न रहने के बाद जो कुछ मुझपर बीता, वह एक दूसरी तरह का अभाव था कि मुझे बैंक की नौकरी करनी पड़ी। लेकिन उससे पूर्व बाबू जी के रहते मैं जब जन्मा था तब वे उत्तर प्रदेश में पुलिस मंत्री थे। उस समय गृहमंत्री को पुलिस मंत्री कहा जाता था। इसलिए मैं हमेशा कल्पना किया करता था कि हमारे पास ये छोटी गाड़ी नहीं, बड़ी आलीशान गाड़ी होनी चाहिए। बाबू जी प्रधानमंत्री हुए तो वहाँ जो गाड़ी थी वह थी, इंपाला शेवरलेट। उसे देख-देख बड़ा जी करता कि मौका मिले और उसे चलाऊँ। प्रधानमंत्री का लड़का था। कोई मामूली बात नहीं थी। सोचते-विचारते, कल्पना की उड़ान भरते एक दिन मौका मिल गया। धीरे-धीरे हिम्मत भी खुल गई थी ऑर्डर देने की। हमने बाबू जी के निजी सचिव से कहा- "सहाय साहब, जरा ड्राइवर से कहिए, इंपाला लेकर रेजिडेंस की तरफ आ जाएँ।"
दो मिनट में गाड़ी आकर दरवाजे पर लग गई। अनिल भैया ने कहा- "मैं तो इसे चलाऊँगा नहीं। तुम्हीं चलाओ।"
मैं आगे बढ़ा। ड्राइवर से चाभी माँगी। बोला-"तुम बैठो, आराम करो, हम लोग वापस आते हैं अभी।" 
(1) कृति पूर्ण कीजिए : 
(i) 
 

निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : 
आँख खुली तो मैंने अपने-आपको एक बिस्तर पर पाया। इर्द-गिर्द कुछ परिचित-अपरिचित चेहरे खड़े थे। आँख खुलते ही उनके चेहरों पर उत्सुकता की लहर दौड़ गई। मैंने कराहते हुए पूछा "मैं कहाँ हूँ ?"
"आप सार्वजनिक अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में हैं। आपका ऐक्सिडेंट हो गया था। सिर्फ पैर का फ्रैक्चर हुआ है। अब घबराने की कोई बात नहीं।" एक चेहरा इतनी तेजी से जवाब देता है, लगता है मेरे होश आने तक वह इसलिए रुका रहा। अब मैं अपनी टाँगों की ओर देखता हूँ। मेरी एक टाँग अपनी जगह पर सही-सलामत थी और दूसरी टाँग रेत की थैली के सहारे एक स्टैंड पर लटक रही थी। मेरे दिमाग में एक नये मुहावरे का जन्म हुआ। 'टाँग का टूटना' यानी सार्वजनिक अस्पताल में कुछ दिन रहना। सार्वजनिक अस्पताल का खयाल आते ही मैं काँप उठा। अस्पताल वैसे ही एक खतरनाक शब्द होता है, फिर यदि उसके साथ सार्वजनिक शब्द चिपका हो तो समझो आत्मा से परमात्मा के मिलन होने का समय आ गया। अब मुझे यूँ लगा कि मेरी टाँग टूटना मात्र एक घटना है और सार्वजनिक अस्पताल में भरती होना दुर्घटना। 
(1) उत्तर दीजिए :