निम्नलिखित पिठत पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए : घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा ॥
दामिनि दमक रहहिं घन माहीं। खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं ॥
बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ ॥
बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसे ॥
छुद्र नदी भरि चली तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई ॥
भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहिं माया लपटानी ॥
समिटि-समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा ॥
सरिता जल जलनिधि महुँ जाई। होई अचल जिमि जिव हरि पाई ॥
(3) उपर्युक्त पद्यांश की अंतिम चार पंक्तियों का सरल अर्थ 25 से 30 शब्दों में लिखिए।
Step 1: Understanding the Concept:
हमें पद्यांश की अंतिम चार पंक्तियों का सरल अर्थ अपने शब्दों में लिखना है।
पंक्तियाँ हैं:
छुद्र नदी भरि चली तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई ॥
भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहिं माया लपटानी ॥
समिटि-समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा ॥
सरिता जल जलनिधि महुँ जाई। होई अचल जिमि जिव हरि पाई ॥
Step 2: Detailed Explanation:
सरल अर्थ:
कवि कहते हैं कि छोटी नदियाँ वर्षा के जल से भरकर अपने किनारों को तोड़ती हुई ऐसे बहती हैं जैसे दुष्ट व्यक्ति थोड़ा धन पाकर इतराने लगता है। धरती पर गिरकर पानी गंदा हो जाता है, जैसे जीव से माया लिपट जाती है। धीरे-धीरे जल तालाबों में ऐसे भरता है जैसे सज्जनों के पास सद्गुण आते हैं। और नदी का जल समुद्र में जाकर वैसे ही स्थिर हो जाता है जैसे जीव ईश्वर को पाकर अचल हो जाता है।
Step 3: Final Answer:
कवि तुलसीदास जी कहते हैं कि वर्षा में छोटी नदियाँ ऐसे उफनती हैं जैसे दुष्ट लोग धन पाकर इतराते हैं। पानी एकत्र होकर तालाबों में ऐसे भरता है जैसे सज्जन में सद्गुण आते हैं और अंत में नदी समुद्र में मिलकर वैसे ही स्थिर हो जाती है जैसे जीव प्रभु को पाकर हो जाता है।