Prepare a Common Size Statement of Profit and Loss of Laveena Ltd. for the year ended 31st March, 2023 and 31st March, 2024 from the following information:
Particulars | 2023--24 (₹) | 2022--23 (₹) |
---|---|---|
Revenue from operations | ₹80,00,000 | ₹40,00,000 |
Purchase of stock in trade | ₹8,00,000 | ₹4,00,000 |
Other expenses | ₹80,000 | ₹40,000 |
Tax Rate: $50%$
Step 1: Calculate Net Profit Before and After Tax
For 2023–24:
Revenue from operations = ₹80,00,000
Less: Purchase of stock-in-trade = ₹8,00,000
Less: Other Expenses = ₹80,000
$\Rightarrow$ Net Profit before tax = ₹71,20,000
$\Rightarrow$ Net Profit after tax @50% = ₹35,60,000
For 2022–23:
Revenue from operations = ₹40,00,000
Less: Purchase of stock-in-trade = ₹4,00,000
Less: Other Expenses = ₹40,000
$\Rightarrow$ Net Profit before tax = ₹35,60,000
$\Rightarrow$ Net Profit after tax @50% = ₹17,80,000
Common Size Statement of Profit and Loss
(for the years ended 31st March, 2024 and 2023)
Particulars | 2023–24 (%) | 2022–23 (%) |
---|---|---|
Revenue from operations | 100.00% | 100.00% |
Purchase of stock-in-trade | 10.00% | 10.00% |
Other expenses | 1.00% | 1.00% |
Net Profit before tax | 88.00% | 89.00% |
Tax (50%) | 44.00% | 44.50% |
Net Profit after tax | 44.00% | 44.50% |
‘सूरदास की झोंपड़ी’ से उद्धृत कथन “हम सो लाख बार घर बनाएँगे” के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए सकारात्मक सोच का होना क्यों अनिवार्य है।
शिवालिक की सूखी नीसर पहाड़ियों पर मुस्कुराते हुए ये वृक्ष खड़ेताली हैं, अलमस्त हैं~।
मैं किसी का नाम नहीं जानता, कुल नहीं जानता, शील नहीं जानता पर लगता है,
ये जैसे मुझे अनादि काल से जानते हैं~।
इनमें से एक छोटा-सा, बहुत ही भोला पेड़ है, पत्ते छोटे भी हैं, बड़े भी हैं~।
फूलों से तो ऐसा लगता है कि कुछ पूछते रहते हैं~।
अनजाने की आदत है, मुस्कुराना जान पड़ता है~।
मन ही मन ऐसा लगता है कि क्या मुझे भी इन्हें पहचानता~?
पहचानता तो हूँ, अथवा वहम है~।
लगता है, बहुत बार देख चुका हूँ~।
पहचानता हूँ~।
उजाले के साथ, मुझे उसकी छाया पहचानती है~।
नाम भूल जाता हूँ~।
प्रायः भूल जाता हूँ~।
रूप देखकर सोच: पहचान जाता हूँ, नाम नहीं आता~।
पर नाम ऐसा है कि जब वह पेड़ के पहले ही हाज़िर हो ले जाए तब तक का रूप की पहचान अपूर्ण रह जाती है।
बड़ी हवेली अब नाममात्र को ही बड़ी हवेली है~।
जहाँ दिनभर नौकर-नौकरानियाँ और जन-मज़दूरों की भीड़ लगी रहती थी,
वहाँ आज हवेली की बड़ी बहुरिया अपने हाथ से सूखा में अनाज लेकर फटक रही है~।
इन हाथों से सिर्फ़ मेंहदी लगाकर ही गाँव नाइन परिवार पालती थी~।
कहाँ गए वे दिन~? हरगोबिन ने लंबी साँस ली~। बड़े बैसा के मरने के बाद ही तीनों भाइयों ने आपस में लड़ाई-झगड़ा शुरू किया~।
देवता ने जमीन पर दावे करके दबाव किया, फिर तीनों भाई गाँव छोड़कर शहर में जा बसे,
रह गई बड़ी बहुरिया — कहाँ जाती बेचारी~! भगवान भले आदमी को ही कष्ट देते हैं~।
नहीं तो पट्टे की बीघा में बड़े बैसा क्यों मरते~?
बड़ी बहुरिया की देह से जेवर खींच-खींचकर बँटवारे की लालच पूरी हुई~।
हरगोबिन ने देखती हुई आँखों से दीवार तोड़-झरोन लोहा
बनारसी साड़ी को तीन टुकड़े करके बँटवारा किया था, निर्दय भाइयों ने~।
बेचारी बड़ी बहुरिया~!
यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,
वह पीड़ा, जिस की गहराई को स्वयं उसी ने नापा~;
कुर्स्ता, अपमान, अवज्ञा के धुँधलाते कड़वे तम में
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अमुक्त – नेत्र,
उल्लंब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा~।
जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भी भक्ति को दे दो --
यह दीप, अकेला, स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो~।
लागेउ माँह परे अब पाला~। बिरह काल भएउ जड़ काला~॥
पहिल पहिल तन रूई जो झाँपे~। रहिल रहिल अधिको हिय काँपे~॥
आई सूर होइ तपु रे नाहाँ~। तेहि बिनु जाड़ न छूटे माँहँ~॥
एहि मास उपजै रस मूलू~। तूँ सो भँवर मोर जोबन फूलू~॥