Question:

लागेउ माँह परे अब पाला~। बिरह काल भएउ जड़ काला~॥ 
पहिल पहिल तन रूई जो झाँपे~। रहिल रहिल अधिको हिय काँपे~॥ 
आई सूर होइ तपु रे नाहाँ~। तेहि बिनु जाड़ न छूटे माँहँ~॥ 
एहि मास उपजै रस मूलू~। तूँ सो भँवर मोर जोबन फूलू~॥

Show Hint

“भँवरा और फूल” जैसे प्रतीकों का प्रयोग श्रृंगार काव्य की विशिष्ट शैली है — इन्हें केवल सौंदर्य वर्णन न मानें, इनमें गहरी पीड़ा निहित होती है।
Updated On: Jul 21, 2025
Hide Solution
collegedunia
Verified By Collegedunia

Solution and Explanation

सन्दर्भ:
यह पद्यांश रीतिकालीन काव्य परंपरा के अंतर्गत आता है जिसमें नायिका के प्रेम-विरह और उसकी मनोदशा का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया गया है।
प्रसंग:
यह पद उस समय का चित्रण करता है जब नायिका अपने प्रिय के वियोग में तड़प रही है। ऋतु, मौसम, शरीर और मन — सब पर विरह का प्रभाव स्पष्ट झलकता है।
व्याख्या:
नायिका कहती है कि अब उस पर प्रेम का गहरा प्रभाव पड़ चुका है और वह मोहित हो चुकी है।
विरह का समय इतना कठोर और पीड़ादायक है कि यह शीत ऋतु की तरह हृदय को ठिठुरा देता है।
शरीर के प्रत्येक अंग में कंपन है, रोम-रोम काँप रहा है — यह कंपकंपी केवल ठंड की नहीं, बल्कि प्रिय से बिछोह की है।
उसका तप (सहनशक्ति) टूटने लगी है, और बिना प्रियतम के वह किसी भी ताप (कष्ट) को सहन नहीं कर सकती।
वह कहती है कि यही मास (मौसम) है जिसमें रस पैदा होता है — यह रस केवल प्राकृतिक नहीं, बल्कि प्रेमरस है।
नायिका अपने प्रिय को ‘भँवरा’ और स्वयं को ‘फूल’ कहती है — यह अनुप्रासिक चित्रण प्रेम के सौंदर्य को गहराई से दर्शाता है।
निष्कर्ष:
यह काव्यांश विरह शृंगार का उत्कृष्ट उदाहरण है जिसमें ऋतु, शरीर और प्रेम का संबंध गहराई से जुड़ा हुआ है। नायिका की तड़प, संवेदना और प्रतीकात्मक भाषा भावप्रवण चित्र बनाते हैं।
Was this answer helpful?
0
0

Top Questions on कविता

View More Questions

Questions Asked in CBSE CLASS XII exam

View More Questions