Question:

यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा, 
वह पीड़ा, जिस की गहराई को स्वयं उसी ने नापा~; 
कुर्स्ता, अपमान, अवज्ञा के धुँधलाते कड़वे तम में 
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अमुक्त – नेत्र, 
उल्लंब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा~। 
जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भी भक्ति को दे दो -- 
यह दीप, अकेला, स्नेह भरा 
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो~।

Show Hint

यहाँ ‘दीप’, ‘विश्वास’, ‘स्नेह’ और ‘अपमान’ जैसे प्रतीकों के गहरे अर्थ हैं — उत्तर में उनके प्रतीकात्मक महत्व को स्पष्ट करना अत्यावश्यक है।
Updated On: Jul 21, 2025
Hide Solution
collegedunia
Verified By Collegedunia

Solution and Explanation

सन्दर्भ:
यह पद्यांश प्रसिद्ध कवि अज्ञेय की कविता “यह दीप अकेला” का अंश है, जिसमें कवि एक सशक्त, दृढ़ और निर्भीक आत्मा की गाथा गाता है। यह काव्य उस व्यक्ति की वंदना करता है जो भीतर से आहत होते हुए भी समाज और सृजन के प्रति समर्पित रहता है।
प्रसंग:
कवि यहाँ उस ‘दीप’ की प्रतीकात्मक व्याख्या करता है जो अकेला, स्नेह से भरा, किंतु समाज में उपेक्षित है। यह दीप प्रतीक है उस संवेदनशील रचनाकार का जो संघर्षों, अपमानों और अंधकार के बीच भी अपनी लौ को बुझने नहीं देता।
व्याख्या:
यह विश्वास वह नहीं है जो अपनी लघुता के कारण डगमगा जाए, बल्कि वह है जो भीतर की पीड़ा को भी नापता है।
कवि कहता है कि यह वह भावना है जो अज्ञान, अपमान और कुंठा के धुँधलके में भी आशा की मशाल जलाए रखती है।
यह अनुतप्त, जागरूक और अनभिव्यक्त भावनाओं की वह ऊर्जा है जो थकती नहीं, जो चिर-जीवंत समर्पण में रत रहती है।
यह केवल भावना नहीं, तपस्या है — जिसने पीड़ा को सहा है, जिया है, समझा है।
कवि इस आत्मा को ‘जिज्ञासु’, ‘प्रबुद्ध’, ‘श्रद्धामय’ कहकर संबोधित करता है और समाज से माँग करता है कि इसे भी अपनी “पंक्ति” में स्थान दिया जाए।
यह दीप अकेला है — फिर भी वह गर्व, स्नेह और धैर्य से भरा है। यह अपराजेय चेतना का प्रतीक है।
निष्कर्ष:
इस पद्यांश में कवि अज्ञेय ने रचनाकार, संवेदनशील व्यक्ति और समाज के उपेक्षित भावकों के प्रति सम्मान और स्वीकार्यता की माँग की है। यह दीप वास्तव में आत्मबल, समर्पण और करुणा का प्रतीक है।
Was this answer helpful?
0
0

Top Questions on कविता

View More Questions

Questions Asked in CBSE CLASS XII exam

View More Questions