Question:

बड़ी हवेली अब नाममात्र को ही बड़ी हवेली है~। 
जहाँ दिनभर नौकर-नौकरानियाँ और जन-मज़दूरों की भीड़ लगी रहती थी, 
वहाँ आज हवेली की बड़ी बहुरिया अपने हाथ से सूखा में अनाज लेकर फटक रही है~। 
इन हाथों से सिर्फ़ मेंहदी लगाकर ही गाँव नाइन परिवार पालती थी~। 
कहाँ गए वे दिन~? हरगोबिन ने लंबी साँस ली~। बड़े बैसा के मरने के बाद ही तीनों भाइयों ने आपस में लड़ाई-झगड़ा शुरू किया~। 
देवता ने जमीन पर दावे करके दबाव किया, फिर तीनों भाई गाँव छोड़कर शहर में जा बसे, 
रह गई बड़ी बहुरिया — कहाँ जाती बेचारी~! भगवान भले आदमी को ही कष्ट देते हैं~। 
नहीं तो पट्टे की बीघा में बड़े बैसा क्यों मरते~? 
बड़ी बहुरिया की देह से जेवर खींच-खींचकर बँटवारे की लालच पूरी हुई~। 
हरगोबिन ने देखती हुई आँखों से दीवार तोड़-झरोन लोहा 
बनारसी साड़ी को तीन टुकड़े करके बँटवारा किया था, निर्दय भाइयों ने~। 
बेचारी बड़ी बहुरिया~!

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‘बड़ी हवेली’ यहाँ केवल भवन नहीं, एक सांस्कृतिक और पारिवारिक व्यवस्था का प्रतीक है — उत्तर में यह प्रतीक स्पष्ट करें।
Updated On: Jul 21, 2025
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Solution and Explanation

सन्दर्भ:
यह गद्यांश पाठ ‘संवदिया’ से लिया गया है, जिसमें लेखक ने एक सामंती परिवार की पतनशील अवस्था का चित्रण किया है। यह अंश समाज में घट रही सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक टूटन का प्रतीक है।
प्रसंग:
यह गद्यांश उस समय का चित्रण करता है जब हरगोबिन बड़ी हवेली आता है और वहाँ की वीरानी देखकर चौंक उठता है। वह स्थान, जहाँ कभी रौनक और वैभव था, अब उजाड़ और निष्प्राण हो गया है।
व्याख्या:
बड़ी हवेली, जो कभी संपन्नता, वैभव और जनसंपर्क का केंद्र थी — अब केवल एक नाम भर रह गई है।
जहाँ पहले नौकर-चाकरों और किसानों की चहल-पहल थी, वहीं अब केवल बड़ी बहुरिया अकेले अपने हाथों से चूल्हा-चौका करती दिखाई देती है।
हरगोबिन के मन में प्रश्न उठता है — कहाँ गए वे दिन, वह समृद्धि, वह परिवार का साझा जीवन?
गद्यांश के अगले भाग में स्पष्ट होता है कि बड़े भैया की मृत्यु के बाद तीनों भाइयों में आपसी झगड़े, ज़मीन-जायदाद का बँटवारा, और रिश्तों की दरारें बढ़ गईं।
तीनों भाई गाँव छोड़कर शहर चले गए और बड़ी बहुरिया को अकेला छोड़ दिया। न वह घर की रही, न समाज की।
यह चित्रण केवल एक परिवार की कहानी नहीं, बल्कि उस सामाजिक ताने-बाने का पतन है जहाँ संयुक्त परिवार और आत्मीयता की भावना थी।
निष्कर्ष:
यह गद्यांश सामंती संस्कृति के विघटन, पारिवारिक एकता के ह्रास और स्त्री की उपेक्षा का गहन चित्र प्रस्तुत करता है। बड़ी हवेली की वीरानी दरअसल बदलते समाज की चेतावनी है।
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