निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जहाँ भूमि पर पड़ा कि
सोना धँसता, चाँदी धँसती
धँसती ही जाती पृथ्वी में
बड़ों–बड़ों की हस्ती।
शक्तिवान जो हुआ कि
बैठा भू पर आसन मारे
खा जाते हैं उसको
मिट्टी के ढेले हत्यारे।
मातृभूमि है उसकी, जिसका
उठके जीना होता है,
दहन–भूमि है उसकी, जो
क्षण–क्षण गिरता जाता है,
भूमि खींचती है मुझको भी
नीचे धीरे–धीरे
किंतु लहराता हूँ मैं नभ पर
शीतल–मंद–समीर।
काला बादल आता है
गुरु गर्जन स्वर भरता है
विद्रोही–मस्तक पर वह
अभिषेक किया करता है।
विद्रोही हैं हमीं, हमारे
फूलों से फल आते हैं
और हमारी कुरबानी पर
जड़ भी जीवन पाते हैं।
निम्नलिखित काव्यांश में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
यह जन है — गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा?
पनडुब्बा — ये मोती सच्चे फिर कौन कूती लाएगा?
यह सम्भावना — ऐसी आग हटेगा बिसला सुलगाएगा।
यह अदितीय — यह मेरा — यह मैं स्वयं विसर्जित —
यह दीप, अकेला, स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्तियों को दे दो।
निम्नलिखित काव्यांश में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
आगहन देवस घटा निशि बारी।
दूसर, दुख सो जाइ किमि कारी॥
अब धनि देवस बिरह भा राती।
जरे बिरह ज्यों दीपक बाती॥
काँपा हिया जनावा सीऊ।
तो पै जाइ होइ सँग पीऊ॥
घर घर चीर रचा सब काहूँ।
मोरे रूप रंग ले गा नाहूँ॥
निम्नलिखित पवित्र काव्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कर लिखिए :
पुलकि सरीर सभाँ भए ठाढे । नीरज नयन नेह जल बाढे ॥
कबहुँ भरे मुनिनाथ निबाहा । एहि ते अधिक कहाँ मैं काहा ॥
मैं जानउँ प्रभु नाथ सुभाऊ । अपराधि पर कोप न राउ ॥
मो पर कृपा सदेइ बिसेषी । खेलत खुशी न कहूँ देखी ॥
सिपुन्स में परिहउँ न संगू । कबहुँ न कीन्ह मोर मन भंगू ॥
हे प्रभु कृपा तिन्ह जियं जोही । हारहूँ खेल जितावहिं मोही ॥
मूंह नहेइ सकौं बस समुख कह न बैसि ।
दास तृपति न आतु लगी पाप पियाउस नै ॥
‘सरोज स्मृति’ कवि का एक शोक गीत है। तर्कपूर्ण उत्तर से सिद्ध कीजिए।
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल बिंधूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की संपत्ति चाहूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं।
क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही
वरदान माँगूँगा नहीं।
लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं त्यागूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं।
चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किंतु भागूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं।
If \[ A = \begin{bmatrix} 2 & -3 & 5 \\ 3 & 2 & -4 \\ 1 & 1 & -2 \end{bmatrix}, \] find \( A^{-1} \).
Using \( A^{-1} \), solve the following system of equations:
\[ \begin{aligned} 2x - 3y + 5z &= 11 \quad \text{(1)} \\ 3x + 2y - 4z &= -5 \quad \text{(2)} \\ x + y - 2z &= -3 \quad \text{(3)} \end{aligned} \]
‘सूरदास की झोंपड़ी’ से उद्धृत कथन “हम सो लाख बार घर बनाएँगे” के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए सकारात्मक सोच का होना क्यों अनिवार्य है।
शिवालिक की सूखी नीसर पहाड़ियों पर मुस्कुराते हुए ये वृक्ष खड़ेताली हैं, अलमस्त हैं~।
मैं किसी का नाम नहीं जानता, कुल नहीं जानता, शील नहीं जानता पर लगता है,
ये जैसे मुझे अनादि काल से जानते हैं~।
इनमें से एक छोटा-सा, बहुत ही भोला पेड़ है, पत्ते छोटे भी हैं, बड़े भी हैं~।
फूलों से तो ऐसा लगता है कि कुछ पूछते रहते हैं~।
अनजाने की आदत है, मुस्कुराना जान पड़ता है~।
मन ही मन ऐसा लगता है कि क्या मुझे भी इन्हें पहचानता~?
पहचानता तो हूँ, अथवा वहम है~।
लगता है, बहुत बार देख चुका हूँ~।
पहचानता हूँ~।
उजाले के साथ, मुझे उसकी छाया पहचानती है~।
नाम भूल जाता हूँ~।
प्रायः भूल जाता हूँ~।
रूप देखकर सोच: पहचान जाता हूँ, नाम नहीं आता~।
पर नाम ऐसा है कि जब वह पेड़ के पहले ही हाज़िर हो ले जाए तब तक का रूप की पहचान अपूर्ण रह जाती है।