'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य का नायक चन्द्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अमर सेनानी और वीर क्रांतिकारी था। कवि ने उनके चरित्र का वर्णन इस प्रकार किया है कि वे केवल एक नेता ही नहीं, बल्कि भारतीय युवाओं के लिए आदर्श, प्रेरणा और त्याग–बलिदान की मूर्ति बन जाते हैं।
जन्म और प्रारम्भिक जीवन:
चन्द्रशेखर का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के भाबरा नामक गाँव में हुआ। वे बचपन से ही साहसी, निर्भीक और न्यायप्रिय थे। देशभक्ति की भावना उनके भीतर प्रारम्भ से ही विद्यमान थी।
स्वभाव और गुण:
आज़ाद का स्वभाव दृढ़, निडर और आत्मविश्वासी था। वे कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और साहस बनाए रखते थे। उनका हास्य–स्वभाव भी प्रसिद्ध था। साथी जब निराश हो जाते तो आज़ाद उन्हें उत्साह और हिम्मत से भर देते थे। वे शत्रु के सामने कभी झुकते नहीं थे।
क्रांतिकारी जीवन:
नेहरू और गांधीजी के आह्वान पर उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया। असहयोग आन्दोलन के दौरान वे गिरफ्तार हुए। जब अदालत में उनसे नाम पूछा गया तो उन्होंने कहा—"नाम: आज़ाद, पिता का नाम: स्वतंत्रता, और निवास: जेल।" उसी दिन से वे "चन्द्रशेखर आज़ाद" के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
उन्होंने भगत सिंह, राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का नेतृत्व किया। वे न केवल संगठनकर्ता थे, बल्कि वीर सेनापति की भांति योजनाएँ बनाकर उनका क्रियान्वयन भी करते थे।
व्यक्तित्व और आदर्श:
आज़ाद का जीवन त्याग और संयम का अद्भुत उदाहरण था। वे कहते थे कि वे कभी अंग्रेजों के हाथ जीवित नहीं पकड़े जाएंगे। उनका आचरण अनुशासित, जीवन सादगीपूर्ण और उद्देश्य केवल राष्ट्र की स्वतंत्रता था। वे बच्चों और युवाओं में नई ऊर्जा और जोश का संचार करते थे।
बलिदान:
27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में जब अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया, तब उन्होंने अंतिम सांस तक वीरतापूर्वक संघर्ष किया। जब पिस्तौल की अंतिम गोली बची, तब उन्होंने उसे स्वयं पर चलाकर मातृभूमि पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
निष्कर्ष:
चन्द्रशेखर आज़ाद का चरित्र साहस, निडरता, त्याग, देशप्रेम और बलिदान का प्रतीक है। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर सपूत थे, जिन्होंने अपने अदम्य साहस से युवाओं को प्रेरित किया और राष्ट्र की ज्योति बनकर अमर हो गए।