Comprehension

ऊधौ मन न भरे दस बीस। 
एक हुतो सो गयो श्याम संग, 
को अवराधे ईस।। 

इंद्री सिथिल भई केसव बिनु, 
ज्यों देही बिनु सीस। 
आसा लागि रहति तन स्वासा, 
जीवहिं कोटि बरीस।। 

तुम तो सखा श्याम सुंदर के, 
सकल जोग के ईस। 
सूर हमारे नंदनंदन बिनु, 
और नहीं जगदीस।। 
 

Question: 1

उपयुक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

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सन्दर्भ लिखते समय लेखक का नाम, रचना का नाम और भाव का सारांश अवश्य लिखें।
Updated On: Oct 27, 2025
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यह पद्यांश भक्त कवि सूरदास द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण (श्यामसुंदर) के प्रति अपनी गहरी भक्ति और आत्मिक लगाव को व्यक्त किया है। कवि कहता है कि संसार के अन्य देवता और योग के उपासक उसकी दृष्टि में महत्वहीन हैं, क्योंकि उसके लिए केवल श्यामसुंदर ही जीवन के आधार और प्रियतम हैं।
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Question: 2

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

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रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय उसका भावार्थ स्पष्ट और संक्षेप में लिखना चाहिए।
Updated On: Oct 27, 2025
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रेखांकित अंश — "कोऽऽराधै ईस।" इसका अर्थ है — कवि कहता है कि जब एक बार उसका मन भगवान श्रीकृष्ण में लग गया है तो अब वह किसी अन्य देवता की आराधना क्यों करे? उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य श्रीकृष्ण की भक्ति है। जैसे जल के बिना मछली जीवित नहीं रह सकती, वैसे ही कवि अपने जीवन में श्रीकृष्ण के बिना कुछ भी अर्थपूर्ण नहीं मानता।
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Question: 3

"इंद्रि सिथिल भई केसव बिनु, ज्यों देह बिनु सीस।" उपयुक्त पंक्ति में प्रयुक्त अलंकार का नाम लिखिए।

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अलंकार पहचानते समय ध्यान दें कि तुलना हो तो उपमा, समानता हो तो रूपक और ध्वनि की पुनरावृत्ति हो तो अनुप्रास कहलाता है।
Updated On: Oct 27, 2025
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इस पंक्ति में कवि कहता है कि जैसे सिर के बिना शरीर बेकार है, वैसे ही श्रीकृष्ण (केसव) के बिना इन्द्रियाँ शिथिल और निष्प्राण हो जाती हैं। यहाँ उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है, क्योंकि कवि ने इन्द्रियों की निष्क्रियता की तुलना सिरहीन शरीर से की है।
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