'तुमुल' खण्डकाव्य के नायक लक्ष्मण हैं। कवि श्यामनारायण पाण्डेय ने उनके चरित्र को एक आदर्श भाई, महान योद्धा और निस्वार्थ सेवक के रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
आदर्श भ्राता: लक्ष्मण में भ्रातृ-प्रेम अपने चरम पर है। वे अपने बड़े भाई श्रीराम की सेवा के लिए राज-सुखों को त्यागकर चौदह वर्षों के लिए वन चले जाते हैं। राम की सेवा ही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य है।
अद्वितीय वीर और साहसी योद्धा: लक्ष्मण अतुलनीय वीर हैं। वे अकेले ही शूर्पणखा का मान-मर्दन करते हैं और खर-दूषण की सेना से लोहा लेते हैं। युद्ध में वे रावण के पुत्र मेघनाद जैसे अजेय योद्धा का वध करते हैं।
उग्र एवं ओजस्वी स्वभाव: लक्ष्मण का स्वभाव अत्यंत उग्र और स्वाभिमानी है। वे अपने भाई श्रीराम या भाभी सीता का कोई भी अपमान सहन नहीं कर सकते और तुरंत क्रोधित हो जाते हैं। परशुराम-संवाद में उनका यही रूप दिखाई देता है।
निःस्वार्थ सेवक: वनवास के दौरान वे एक क्षण के लिए भी विश्राम नहीं करते और रात-दिन जागकर राम-सीता की रक्षा और सेवा करते हैं। उनका जीवन निःस्वार्थ सेवा का अनुपम उदाहरण है।
विवेकशील: यद्यपि वे स्वभाव से उग्र हैं, किन्तु वे विवेकशील भी हैं। वे सदैव श्रीराम की आज्ञा का पालन करते हैं और उनके निर्णयों का सम्मान करते हैं।