'मेघनाद-वध' सर्ग की कथावस्तु
यह 'तुमुल' खण्डकाव्य का एक महत्वपूर्ण सर्ग है, जिसमें लक्ष्मण द्वारा मेघनाद के वध का वर्णन है।
लक्ष्मण द्वारा शक्ति-प्रहार से मूर्च्छित होने के बाद हनुमान जी द्वारा लाई गई संजीवनी बूटी से लक्ष्मण के प्राण बच जाते हैं।
स्वस्थ होने पर लक्ष्मण के मन में मेघनाद से प्रतिशोध की ज्वाला धधक उठती है। वे पुनः युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं।
विभीषण लक्ष्मण को बताते हैं कि मेघनाद अपनी कुलदेवी की यज्ञशाला में अजेय होने के लिए एक तांत्रिक यज्ञ कर रहा है। यदि यज्ञ पूरा हो गया तो उसे पराजित करना असम्भव हो जाएगा।
विभीषण के मार्गदर्शन में लक्ष्मण, हनुमान और वानर सेना के साथ उस गुप्त यज्ञशाला पर आक्रमण कर देते हैं।
वे मेघनाद का यज्ञ भंग कर देते हैं। क्रोधित मेघनाद युद्ध के लिए बाहर आता है।
लक्ष्मण और मेघनाद के बीच एक बार फिर अत्यंत भयंकर और निर्णायक युद्ध होता है। दोनों अपनी समस्त शक्तियों और दिव्यास्त्रों का प्रयोग करते हैं।
अंत में, लक्ष्मण एक अमोघ बाण से मेघनाद का सिर काट देते हैं। मेघनाद के वध से राक्षस सेना में हाहाकार मच जाता है और वानर सेना में जय-जयकार होने लगती है।