'तुमुल' खण्डकाव्य के नायक लक्ष्मण हैं। वे श्रीराम के छोटे भाई और एक आदर्श अनुज हैं। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
अद्वितीय भ्रातृ-भक्त: लक्ष्मण के जीवन का एकमात्र उद्देश्य अपने बड़े भाई श्रीराम की सेवा करना है। वे श्रीराम के लिए अपने सभी सुखों, यहाँ तक कि अपनी पत्नी उर्मिला का भी त्याग कर उनके साथ वन चले जाते हैं।
महान वीर और साहसी: वे एक अतुलनीय योद्धा हैं। युद्ध-भूमि में वे अकेले ही रावण के पुत्र मेघनाद जैसे मायावी योद्धा को भी परास्त कर देते हैं। उनकी वीरता की प्रशंसा शत्रु भी करते हैं।
उग्र स्वभाव: लक्ष्मण को अन्याय सहन नहीं होता और वे शीघ्र ही क्रोधित हो जाते हैं। उनका क्रोध धर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए होता है।
त्यागी और तपस्वी: वनवास के चौदह वर्षों तक वे अपने भाई-भाभी की सेवा के लिए कभी सोये नहीं। उन्होंने एक तपस्वी की भाँति कठोर जीवन व्यतीत किया।
अजेय योद्धा: लक्ष्मण को युद्ध में पराजित करना असंभव था। मेघनाद भी उन्हें सीधे युद्ध में नहीं हरा सका और उसे छल से 'शक्ति' बाण का प्रयोग करना पड़ा।
सेवा-भाव की प्रतिमूर्ति: उनका सम्पूर्ण जीवन सेवा और समर्पण का प्रतीक है। वे बिना किसी स्वार्थ के केवल अपने भाई की सेवा में लगे रहते हैं।
संक्षेप में, लक्ष्मण भ्रातृ-भक्ति, वीरता, त्याग और सेवा की प्रतिमूर्ति हैं।