'स्वधर्म' के तात्पर्य स्पष्ट करें।
Step 1: परिभाषा.
स्वधर्म = स्वभावानुकूल दायित्व; कर्म का मापदण्ड 'फल' नहीं, 'नैतिक उचितता' और 'समत्व'।
Step 2: निष्कामता.
फलासक्ति छोड़े बिना स्वधर्म बन्धन देता है; ईश्वरार्पण और समत्व इसे योग बनाते हैं।
Step 3: व्यावहारिकता.
अपनी योग्यता/भूमिका का यथार्थ आकलन—विद्यार्थी, गृहस्थ, कर्मचारी, नागरिक—सबके कर्तव्य भिन्न, पर नैतिक।
Step 4: परिणाम.
स्वधर्म से स्थिरता, आत्मविश्वास और आन्तरिक शान्ति बढ़ती है; समाज में भी न्याय और सुव्यवस्था प्रबल होती है।
निष्काम कर्म का मूल सिद्धान्त है।
भगवद्गीता में कौन-से विचार पाये जाते हैं ?
गीता के अनुसार योग का क्या अर्थ है ?
गीता में कुल कितने अध्याय हैं ?
गीता में योग का क्या अर्थ है?