Question:

संस्कृत गद्यांश का हिन्दी में अनुवाद कीजिए: धन्येयं भारतभूमिर्यत्र साधुजनानां परित्राणाय दुष्कृताञ्च विनाशाय सृष्टिस्थितिलयकर्ता परमात्मा स्वयमेव कदाचित् रामः कदाचित् कृष्णश्च भूत्वा आविर्बभूवा त्रेतायुगे रामो धनुर्भृत्वा विपथगामिनां राक्षसानां संहारं कृत्वा वर्णाश्रमव्यवस्थामरक्षत् । द्वापरे कृष्णो धर्मध्वंसिनः कुनृपतीन् उत्पाट्य धर्ममत्रायत । सैषा स्थितिः यदा कलौ समुत्पन्ना बभूव, तदा नीललोहितः भवगवान् शिवः शङ्कररूपेण पुनः प्रकटीबभूव ।

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लंबे वाक्यों का अनुवाद करते समय उन्हें छोटे-छोटे भागों में तोड़ लें। कर्ता, कर्म और क्रिया की पहचान करने से वाक्य का अर्थ स्पष्ट हो जाता है और अनुवाद करना सरल हो जाता है।
Updated On: Nov 17, 2025
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Solution and Explanation

हिन्दी अनुवाद:
यह भारतभूमि धन्य है जहाँ सज्जनों की रक्षा के लिए और दुष्टों के विनाश के लिए सृष्टि, स्थिति और लय के कर्ता परमात्मा स्वयं ही कभी राम और कभी कृष्ण होकर अवतरित हुए। त्रेतायुग में राम ने धनुष धारण करके पथभ्रष्ट राक्षसों का संहार करके वर्णाश्रम व्यवस्था की रक्षा की। द्वापर में कृष्ण ने धर्म का नाश करने वाले दुष्ट राजाओं को उखाड़कर धर्म की रक्षा की। जब यही स्थिति कलियुग में उत्पन्न हुई, तब नील-लोहित (नीले और लाल वर्ण वाले) भगवान शिव, शंकर के रूप में पुनः प्रकट हुए।
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