ऋग्वैदिक विचार में 'ऋत' समस्त सृष्टि-व्यवस्था/कॉस्मिक ऑर्डर का नाम है—जो प्रकृति (ऋतु-चक्र, ग्रह-गति), धार्मिक/याज्ञिक विधि-व्यवस्था (यज्ञ का शुद्ध क्रम) और नैतिक सत्पथ/सत्य के नियम—तीनों को एक साथ नियोजित करता है। वरुण–मित्र आदि देवताओं को इसके रक्षक माना गया; सत्य (satya) इसका मानवीय रूप और आगे चलकर धर्म उसका सामाजिक-नैतिक विस्तार माना गया। इसलिए 'ऋत' केवल एक क्षेत्र तक सीमित न होकर भौतिक, धार्मिक और नैतिक—सभी नियमों से सम्बन्ध रखता है; अतः सही विकल्प (4) इनमें से सभी से।