चरण 1: लेखक व कृति की पहचान।
5वीं शताब्दी के महान व्याकरण-दार्शनिक भरतृहरि की प्रमुख रचना 'वाक्यपदीयम्' है—यह भाषा-दर्शन, व्याकरण और ज्ञानमीमांसा पर आधारभूत ग्रन्थ है। ग्रन्थ तीन काण्डों में विभक्त माना जाता है: ब्रह्म-काण्ड (शब्द-ब्रह्म, दार्शनिक आधार), वाक्य-काण्ड (वाक्य/पद की सत्ता, अर्थ-संबन्ध), और प्रकीर्णक-काण्ड (विविध विषय)।
चरण 2: विचार-सामग्री का सार।
भरतृहरि स्फोटवाद को विस्तार से प्रतिपादित करते हैं—अर्थात एकात्मक वाक्य-स्फोट से अर्थ का उद्भव, जहाँ शब्द/वाक्य केवल प्रत्यभिज्ञान का माध्यम हैं; साथ ही शब्द-ब्रह्म की अवधारणा—भाषा/वाणी को सृष्टि-आधार मानने का दार्शनिक प्रतिपादन।
चरण 3: विकल्पों का उन्मूलन।
(1) स्फोटवाद कोई ग्रन्थ नहीं, बल्कि भरतृहरि (और पूर्ववर्ती पतंजलि-आदि) का सिद्धान्त है; (3) शब्दबोध सामान्य विषय/समस्या है, ग्रन्थ-नाम नहीं। अतः सही उत्तर 'वाक्यपदीयम्'।