Comprehension

पुर में निकसी रघुबीर-बधू, धीर धीर दये मग में डग दूवे।
झलकीं भरी भाल कनी जल की, पुट सुथि गये मधुराधर बै।। 
फिर बूझति हैं- 'चलनो अब केतनि, पर्णकुटी करिहौं किंत है?'
तिय की लखि आतुरता पिय की, आँकिया अति चाक चलीं जल छौ।। 
 

Question: 1

उपयुक्त पद्यांश का संदर्भ लिखिए।

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संदर्भ लिखते समय हमेशा यह बताएँ कि पद्यांश किस ग्रंथ या प्रसंग से लिया गया है।
Updated On: Oct 27, 2025
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Solution and Explanation

यह पद्यांश रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड से लिया गया है। इसमें वर्णन है कि श्रीराम, सीता और लक्ष्मण गंगा पार करके आगे वन की ओर बढ़ रहे हैं। गंगा तट पर पहुँचते ही श्रीराम भावुक हो जाते हैं और सीता से कहते हैं कि अब उन्हें पर्णकुटी बनानी चाहिए। यह प्रसंग उनके वनवास के प्रारंभिक दिनों का हृदयस्पर्शी चित्रण है।
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Question: 2

श्रीराम के नैनों से आँसू क्यों बहने लगे?

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'क्यों' वाले प्रश्नों में कारण को सीधे और स्पष्ट लिखना चाहिए।
Updated On: Oct 27, 2025
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श्रीराम के नैनों से आँसू इसलिए बहने लगे क्योंकि वे वनवास की कठोर परिस्थितियों के बारे में सोचकर भावुक हो गए थे। उन्हें यह विचार आया कि अयोध्या के राजमहलों को छोड़कर अब उन्हें साधारण पर्णकुटी में निवास करना होगा। यह सोचकर उनकी आँखों में करुणा और विषाद के आँसू उमड़ आए।
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Question: 3

रेखांकित अंश – 'पर्णकुटी कोरिहौं किंतु है' में कौन-सा अलंकार है?

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अलंकार पहचानते समय यह देखना जरूरी है कि उसमें किस प्रकार की विशेषता (व्यंग्य, अनुप्रास, उपमा आदि) छिपी हुई है।
Updated On: Oct 27, 2025
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Solution and Explanation

रेखांकित अंश 'पर्णकुटी कोरिहौं किंतु है' में व्याजस्तुति अलंकार है। यहाँ पर्णकुटी बनाने की बात कहकर महलों और सुख-सुविधाओं के त्याग की व्यंजना की गई है। इस प्रकार त्याग और सरल जीवन की महिमा अप्रत्यक्ष रूप से प्रकट होती है।
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