Question:

फगुन पवन झकोरै बागा। चौपइ रीति जाइ किमि सागा।। 
तन जस पियरि पात भा भोगा। बिसरि न हिये पवन होइ झोगा।। 
तविर झरे उरझे बन डोला। भइ अनुपम फूल फर फोला।। 
कहिर बनाफूल कीन्हे हुलासु। मो कहँ लग्य अब दूषणु उदासु।। 
 

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घनानंद की रचनाओं में प्रेम और वियोग की अनुभूतियाँ अत्यंत सजीव और स्वाभाविक रूप में अभिव्यक्त होती हैं — यही उनकी काव्यशैली की विशेषता है।
Updated On: Jul 21, 2025
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Solution and Explanation

संदर्भ:
यह पंक्तियाँ रीतिकालीन कवि घनानंद द्वारा रचित हैं, जिसमें उन्होंने प्रेम की व्यथा और प्रिय वियोग की पीड़ा को अत्यंत मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया है।
प्रसंग:
कवि इस पद में वसंत ऋतु की मादकता के समय अपनी प्रेम पीड़ा को व्यक्त करता है। जब प्रकृति में उल्लास और उत्सव का वातावरण है, तब भी कवि के हृदय में वियोगजन्य दुख व्याप्त है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि फागुन की बयार बागों को झुला रही है, जिससे चारों ओर आनंद का वातावरण बन गया है।
वृक्षों की डालियाँ झूम रही हैं और फूल खिल रहे हैं, परंतु यह सब कवि को सुख नहीं देता।
वह कहता है कि जैसे पत्ते पीले होकर झरते हैं, उसी प्रकार उसका तन-मन भी प्रिय के वियोग में मुरझा गया है।
हवा की हर सरसराहट उसे प्रिय की याद दिलाती है, और वह इन सब प्राकृतिक सौंदर्य से भी दुखी हो गया है।
बनाफूलों की खुशबू और प्रकृति का उल्लास भी उसे दुखदायी प्रतीत होता है, क्योंकि प्रिय के बिना कोई भी सुंदर वस्तु उसे प्रिय नहीं लगती।
वह स्वयं को दोषी मानते हुए कहता है कि प्रकृति के इस उल्लास में भी उसका मन उदासी से घिरा हुआ है।
निष्कर्ष:
यह पद प्रेम की तीव्रता और वियोग की व्यथा का अद्भुत चित्र प्रस्तुत करता है। कवि ने प्रकृति के माध्यम से अपने मनोभावों को इस प्रकार उकेरा है कि पाठक भी उस वेदना को महसूस कर सके।
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