Question:

निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : 
‘‘पुर्ज़े खोलकर फिर ठीक करना उतना कठिन काम नहीं है, लोग सीखते भी हैं, सिखाते भी हैं, अनाड़ी के हाथ में चाहे घड़ी मत दो पर जो घड़ीसाज़ी का इम्तहान पास कर आया है उसे तो देखने दो । साथ ही यह भी समझा दो कि आपको स्वयं घड़ी देखना, साफ़ करना और सुधारना आता है कि नहीं । हमें तो धोखा होता है कि परदादा की घड़ी जेब में डाले फिरते हो, वह बंद हो गई है, तुम्हें न चाबी देना आता है न पुर्ज़े सुधारना तो भी दूसरों को हाथ नहीं लगाने देते इत्यादि ।’’ 
 

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‘घड़ी’ शब्द को प्रतीक मानकर उत्तर लिखें — यह परंपरा या सांस्कृतिक धरोहर का रूपक है। विचार करें कि लेखक किसके विरोध में और किसके पक्ष में बोल रहा है।
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Solution and Explanation

सप्रसंग व्याख्या:
यह गद्यांश ‘अपना मालवा...’ पाठ से लिया गया है, जिसमें लेखक अज्ञेय ने सांकेतिक शैली में परंपरा और आधुनिकता के द्वंद्व पर टिप्पणी की है।
यहाँ ‘घड़ी’ प्रतीक है परंपरा की, और ‘घड़ी सुधारना’ का अर्थ है उसमें आवश्यक सुधार और परिवर्तन करना। लेखक कहता है कि यदि किसी व्यक्ति ने ‘घड़ीसाज़ी’ (अर्थात् नवाचार और सुधार) का अभ्यास किया है, तो उसे परंपरा की मरम्मत करने का अधिकार मिलना चाहिए।
लेखक यह भी इंगित करता है कि बहुत से लोग सिर्फ परंपरा का बोझ ढोते रहते हैं (जैसे परदादा की बंद घड़ी), न वे उसमें कोई कार्य करते हैं, न दूसरों को करने देते हैं। यह रूढ़िवादी सोच का प्रतीक है, जो परिवर्तन के प्रति असहिष्णु है।
गद्यांश हमें यह सिखाता है कि परंपराओं का मूल्य तभी है जब वे जीवित, उपयोगी और अर्थपूर्ण हों, न कि केवल स्मारक रूप में सहेजी जाएँ।
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