चरण 1: 'समान तंत्र' का अर्थ।
भारतीय दर्शन में कुछ प्रणालियाँ युग्म के रूप में विकसित हुईं—जिनकी विषयवस्तु और लक्ष्य परस्पर पूरक हों। ऐसे युग्म को ही समान तंत्र कहते हैं।
चरण 2: न्याय–वैशेषिक का युग्म।
न्याय मुख्यतः प्रमाण-तर्कशास्त्र (ज्ञान के साधन, अनुमान-विधि, वाक्य-न्याय, हेत्वाभास आदि) का सैद्धान्तिक ढाँचा देता है। वैशेषिक पदार्थ-मीमांसा (द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय—और बाद में अभाव) के माध्यम से जगत की अस्तित्व-रचना समझाता है। दोनों का सम्मिलित अध्ययन न्याय–वैशेषिक के रूप में प्रसिद्ध है—एक जानने की पद्धति देता है, दूसरा जाने जाने वाले तत्त्वों का वर्गीकरण।
चरण 3: विकल्पों का उन्मूलन।
योग का समान तंत्र सांख्य माना जाता है (सांख्य का तत्त्वज्ञान + योग की साधना-पद्धति)। वेदान्त स्वतंत्र उत्तरमीमांसा परम्परा है। इसलिए न्याय का समान तंत्र वैशेषिक ही है।