Question:

निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : 
किंतु यह भ्रम है... यह बाढ़ नहीं, पानी में डूबे धान के खेत हैं। अगर हम थोड़ी सी हिम्मत बटोरकर गाँव के भीतर चलें, तब वे औरतें दिखाई देंगी जो एक पाँव में झुकी हुई धान के पौधे छप-छप पानी में रोप रही हैं; सुंदर, सुघड़, धूप में चमकमारती काली रंगत और सिरों पर चटाई के किश्तीनुमा हैट, जो फ़ोटो या फ़िल्मों में देखे हुए वियतनामी या चीनी औरतों की याद दिलाते हैं। ज़रा-सी आहट पाते ही वे एक साथ सिर उठाकर चौकी हुई निगाहों से हमें देखती हैं — बिल्कुल उन युवा हिरणियों की तरह, जिन्हें मैंने एक बार कान्हा के वन्यस्थल में देखा था। किंतु वे डरती नहीं, भागती नहीं, सिर्फ़ विस्मय से मुस्कराती हैं और फिर सिर झुकाकर अपने काम में डूब जाती हैं... यह सम्पूर्ण दृश्य इतना साफ़ और सजीव है — अपनी स्वच्छ मासूमियत में इतना संपूर्ण और शाश्वत — कि एक क्षण के लिए विश्वास नहीं होता।

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सप्रसंग व्याख्या में संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या और निष्कर्ष—इन चारों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना जरूरी होता है।
Updated On: Jul 30, 2025
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Solution and Explanation

संदर्भ:
यह गद्यांश उस लेख से लिया गया है जिसमें लेखक ग्रामीण जीवन की सादगी, सौंदर्य और स्त्री शक्ति की छवि को अत्यंत मार्मिकता से प्रस्तुत करता है। यह अंश पाठक को गाँव की वास्तविकता और स्त्रियों के श्रम-सौंदर्य से अवगत कराता है। प्रसंग:
लेखक जब बाढ़ग्रस्त गाँव की ओर बढ़ता है तो उसे यह भ्रम होता है कि पूरा क्षेत्र जलमग्न है। लेकिन जब वह साहस कर आगे बढ़ता है, तो असल दृश्य उसके सामने आता है—यह बाढ़ नहीं बल्कि धान के खेतों में काम करती हुई स्त्रियाँ हैं, जिनकी गतिविधियाँ जल के प्रतिबिंब में एक जीवंत दृश्य रचती हैं। व्याख्या:
इस गद्यांश में लेखक ग्रामीण स्त्रियों की श्रमशीलता, सौंदर्य और आत्मविश्वास का चित्रण करता है। स्त्रियाँ गहरे जल में खड़ी होकर खेतों में काम कर रही हैं। वे सुंदर, सजग और आत्म-नियंत्रित हैं। उनका व्यवहार हिरणियों की तरह चौकस और सजग है, परंतु वे डरती नहीं, भागती नहीं।
यह चित्रण एक ओर ग्रामीण स्त्रियों की शारीरिक स्फूर्ति को दर्शाता है तो दूसरी ओर उनके भीतर के अद्वितीय आत्मबल और कार्यनिष्ठा को भी उजागर करता है। लेखकीय दृष्टि से यह दृश्य बाढ़ से त्रस्त गाँव की व्यथा नहीं, बल्कि गाँव की जीवंतता और कर्मशीलता का प्रतीक बन जाता है।
लेखक इस सौंदर्य से अभिभूत हो जाता है और अंतिम पंक्ति में यह स्वीकार करता है कि यह दृश्य इतना पवित्र और स्थायी है कि उस पर विश्वास करना कठिन हो जाता है। निष्कर्ष:
यह गद्यांश एक गहरे सांस्कृतिक यथार्थ को दर्शाता है जहाँ ग्रामीण स्त्रियाँ केवल खेतिहर नहीं, बल्कि पूरे समाज की आत्मा हैं। यह वर्णन हमें ग्रामीण भारत के सौंदर्य, श्रम और आत्मसम्मान की झलक देता है।
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