Question:

निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
कभी सई–साँझ 
बिना किसी सूचना के 
घुस जाओ इस शहर में 
कभी आरती के आलोक में 
इसे अचानक देखो 
असंपृक्त है इसकी बनावट 
यह आधा जल में है 
आधा मंत्र में 
आधा फूल में है 
आधा शव में 
आधा नींद में है 
आधा शंख में 
अगर ध्यान से देखो 
तो यह आधा है 
और आधा नहीं है 

 

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प्रतीकों की व्याख्या करते समय केवल अर्थ नहीं, बल्कि उनका प्रभाव और भावभूमि भी स्पष्ट करें — “आधा” इस कविता में पूर्णता का ही संकेतक है।
Updated On: Jul 24, 2025
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Solution and Explanation

यह कविता समकालीन कवयित्री कात्यायनी द्वारा रचित है, जिसमें उन्होंने “साँझ” को केवल समय नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक अनुभूति के रूप में प्रस्तुत किया है। कविता प्रतीकात्मक शैली में रची गई है और पाठक को अनुभव के स्तर पर सोचने को प्रेरित करती है।
प्रसंग: यह कविता उस भावभूमि से निकली है जहाँ एक सामान्य समय-खंड — साँझ — को कवयित्री गहराई से अनुभूत करती हैं। इस कविता में साँझ को एक रहस्यमयी, आधे-अधूरे और आध्यात्मिक तत्व के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
व्याख्या: कविता की शुरुआत में कवयित्री कहती हैं कि बिना किसी पूर्व सूचना के एकाएक इस शहर में प्रवेश करो, कभी आरती के आलोक में, और ध्यान से देखो — तो पता चलेगा कि साँझ एक साधारण अनुभव नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक तत्व है।
वह कहती हैं कि यह साँझ “आधा” है — आधा जल में, आधा मंत्र में, आधा फूल में, आधा शव में, आधा नींद में और आधा शंख में।
यहाँ “आधा” शब्द प्रतीक बन जाता है — उस अनुभूति का जो कभी पूरी नहीं होती, जो मनुष्य को अधूरेपन का बोध कराती है और साथ ही एकता का संकेत भी देती है।
आख़िर में कवयित्री कहती हैं कि यदि ध्यान से देखा जाए — तो यह साँझ “आधा” है, और “आधा नहीं भी है”। यह वाक्य दर्शन की ओर संकेत करता है — जहाँ एक वस्तु द्वंद्वात्मक रूप से अस्तित्व में होती है और नहीं भी।
निष्कर्ष: यह कविता जीवन, अनुभूति और समय की गूढ़ता को उजागर करती है। यह केवल साँझ का वर्णन नहीं, बल्कि उसके माध्यम से जीवन की अधूरी पूर्णता को समझने का प्रयास है।
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