Comprehension

निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :

बज रहा है शंख रण-आह्वान का,
बढ़ लिपियों के सन्देशों बलिदान का,
आँखों में तेजस्वी चमक संकल्प की,
ले हृदय उतरा वाणी में अरमान।

हुंकार में लिया अमित बल-शक्ति ले,
और संयमित चिन्तन ले चलन।
उठ, अरे ओ देश के प्यारे तरुण,
सिंधु-सम्म पावन सीमा ताककर
और संयमित चिन्तन ले चलन।

ओ नव युग के उदीयमान नव शक्तिपुत्र,
पथ अंधेरे हैं किन्तु लक्ष्य ओर है
सूर्य-सप्त दीप्ति उठाकर भारत को
देख, कैसा प्रणयता का भोर है।

पायें के सम आँख के प्रतिबिम्ब से
ओ तरुण ! उठ लक्ष्य का संयोग कर।

हस्तलिख करले दृढ़ प्रतिज्ञा प्रज्ञा और बढ़
शून्य के अंधगगन-मंदिर शीश चढ़।
पंथ के पंखों में एक चिरशुभाशय
गूँज रही है जो भारत की पुकार है।
खण्डखंडित द्वार है युद्ध-नेता,
तोड़ दे ये रोष-रक्त यू आह्वान।

Question: 1

पद्यांश में हम आँखों को किसकी प्रतीक मान रहे हैं ?

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प्रतीकात्मक प्रश्न में शब्द का बाह्य नहीं, भावार्थ देखें — ‘आँख’ का अर्थ केवल देखने से कहीं गहरा है।
  • सत्य की जिज्ञासु को
  • सत्कर्म करने वाले को
  • आंतरिक सौंदर्य को निहारने वालों को
  • सुंदरता को देखने मात्र वाले तत्त्वों को
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The Correct Option is A

Solution and Explanation

पद्यांश में कवि ने आँखों को केवल देखने का साधन नहीं माना है, बल्कि उन्हें सत्य के अन्वेषणकर्ता, ज्ञान के खोजी और ब्रह्म के साक्षात्कार का प्रतीक माना है।
यह पंक्तियाँ –
‘‘हम सत्य के अन्वेषक तपस्वी हैं,
वही हमको दिखा सकता है सूर्यम्।’'
यह स्पष्ट करती हैं कि यहाँ आँखें केवल रूप और दृश्य की नहीं, बल्कि अंतर्ज्ञान और सत्य की जिज्ञासा का प्रतीक हैं।
कवि यह बताना चाहता है कि जब दृष्टि में सत्य को जानने की आकांक्षा हो, तभी आँखें सार्थक होती हैं।
अतः विकल्प (A) — ‘सत्य की जिज्ञासु को’ — ही पद्य के भावों से मेल खाता है और सही उत्तर है।
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Question: 2

‘पथ अँधेरे से ढका सब ओर है’ – पंक्ति में ‘अँधेरा’ प्रतीकार्थ है :

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प्रतीक पहचानते समय शब्द के पीछे छिपे भाव को समझें, न कि केवल उसका शब्दकोषीय अर्थ।
  • अज्ञान
  • अंधकार
  • निराशा
  • विपत्तियाँ
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The Correct Option is C

Solution and Explanation

कविता की पंक्ति ‘‘पथ अँधेरे से ढका सब ओर है’’ में ‘अँधेरा’ केवल भौतिक अंधकार का संकेत नहीं देता, बल्कि यह जीवन के मार्ग पर छाए अवरोधों, मानसिक तनावों और निराशा का प्रतीक है।
यहाँ ‘पथ’ जीवन का प्रतीक है और ‘अँधेरा’ उस मानसिक स्थिति को दर्शाता है जहाँ मार्गदर्शन, उम्मीद और स्पष्टता का अभाव है।
कवि कहना चाहता है कि जब हमें कोई दिशा नहीं दिखती, जब उम्मीद की किरण क्षीण हो जाती है — तब वह समय ‘अँधेरा’ कहलाता है।
इसलिए ‘अँधेरा’ का प्रतीकार्थ विकल्प (C) — ‘‘निराशा’’ — सबसे उपयुक्त है।
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Question: 3

‘भाल’ शब्द का अर्थ है :

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संदर्भ आधारित शब्दार्थ में शब्द का शाब्दिक और प्रतीकात्मक दोनों अर्थ समझना ज़रूरी होता है।
  • भाला
  • मस्तक
  • छाती
  • भुजा
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The Correct Option is B

Solution and Explanation

‘भाल’ एक संस्कृत मूल का शब्द है जिसका सामान्य अर्थ होता है – मस्तक या ललाट
पद्यांश में यह शब्द प्रतीकात्मक रूप में प्रयुक्त हुआ है जहाँ कवि सूर्य की किरणों को ‘भाल पर झुकने’ की बात करता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यहाँ ‘भाल’ का अर्थ सिर का ऊपरी भाग या ललाट ही है।
अतः ‘भाल’ शब्द का अर्थ ‘भाला’, ‘छाती’ या ‘भुजा’ नहीं हो सकता क्योंकि वे भिन्न शारीरिक अंग हैं।
इसलिए सही उत्तर है — (B) मस्तक।
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Question: 4

‘लक्ष्य का संधान कर’ से क्या अभिप्राय है ?

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‘संधान’ जैसे शब्दों का भावार्थ समझें — केवल ‘खोज’ नहीं, लक्ष्यभेदी दृष्टिकोण भी है।
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Solution and Explanation

‘लक्ष्य का संधान कर’ का अर्थ है — अपने जीवन के उद्देश्य को स्पष्ट रूप से पहचानना और उस तक पहुँचने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ कार्य करना।
यहाँ ‘संधान’ का अर्थ है — खोज या लक्ष्य पर सीधा प्रहार। कवि पाठक को यह प्रेरणा देता है कि जीवन में जो भी कार्य करें, वह केवल दिशा रहित न हो बल्कि किसी ठोस लक्ष्य की ओर केंद्रित हो।
यह पंक्ति दृढ़ निश्चय, लक्ष्यबद्धता और आत्म-प्रेरणा का प्रतीक है।
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Question: 5

‘तोड़ दे ये लोह-पट तू आनकर’ पंक्ति में ‘लोह-पट’ से क्या आशय है ?

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प्रतीकात्मक शब्दों में अवरोध और उसके संदर्भ को जीवन से जोड़ें।
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Solution and Explanation

‘लोह-पट’ का शाब्दिक अर्थ है — लोहे का द्वार, लेकिन कविता में इसका प्रतीकार्थ है वह बाधा या अवरोध जो व्यक्ति के भीतर या बाहर उसे आगे बढ़ने से रोकते हैं।
यह अवरोध भय, आलस्य, सामाजिक बंधन, रूढ़ियाँ या मानसिक निराशा हो सकते हैं।
कवि कहता है कि व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने भीतर के डर और बाहर की कठिनाइयों को तोड़कर साहस और आत्मबल से आगे बढ़े।
इसलिए ‘लोह-पट’ जीवन की राह में आने वाली कठिन रुकावटों का प्रतीक है।
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Question: 6

इस पद्यांश में क्या प्रेरणा दी गई है ?

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प्रेरणा आधारित उत्तर में ‘किया जाए’ नहीं, ‘किया जाना चाहिए’ जैसे निष्कर्षात्मक वाक्य ज़रूर लिखें।
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Solution and Explanation

इस पद्यांश में कवि ने पाठक को जीवन में संघर्षों से डरने के बजाय उनका सामना करने की प्रेरणा दी है।
पंक्तियाँ जैसे — ‘‘तोड़ दे ये लोह-पट तू आनकर’’ और ‘‘संधान कर’’ — बताती हैं कि व्यक्ति को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए किसी भी प्रकार की रुकावट को पार करना चाहिए।
कविता प्रेरित करती है कि हम भीतर के अंधकार और निराशा से लड़ें, आत्मबल से भरें और जीवन की हर चुनौती का सामना संकल्प के साथ करें।
यह पंक्तियाँ जीवन में सकारात्मक सोच, साहस और कर्मशीलता की प्रेरणा देती हैं।
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