Comprehension

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :

सौरमंडल में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है, जिस पर जीवन संभव है। पृथ्वी और उसके पर्यावरण को बचाने के संकल्प के साथ ‘पृथ्वी दिवस’ हर साल 22 अप्रैल को दुनिया भर में मनाया जाता है। इसे मनाने की शुरुआत 1970 में हुई जब अमेरिकी सांसदों तक बढ़ते प्रदूषण की बिगड़ती पर्यावरण के मुद्दे की गंभीरता को समझा और पृथ्वी बचाने के लिए एक अभियान की शुरुआत हुई। उस कार्यक्रम में देखे आंकड़े, जैसे ऑक्सीजन के स्तर में गिरावट तथा जल, वायु और मृदा प्रदूषण आदि पर्यावरण के आने वाले विनाशकारी स्वरूप को दर्शाते हैं, जिसमें प्लास्टिक का बढ़ता प्रयोग प्लास्टिक को समाप्त करने और प्राकृतिक बचाव का आह्वान करता है।

कहते हैं जैसे-जैसे आत्मकेंद्रितता बढ़ रही है, प्रकृति और पर्यावरण के दोहन की गति भी बढ़ती जा रही है। बढ़ते अंधविकास के कारण वह दिन बहुत दूर नहीं, जब पृथ्वी रहने लायक नहीं बचेगी।

हमने। वास्तव में हम ही हैं जो सभी जगह जा सकते, अनुभव–अनुभूति विनिमयहीनता की समझ और पृथ्वी के प्रति अपने कर्तव्यों द्वारा। गान्धीजी का मानना था कि पृथ्वी, जल, वायु और भूमि हमारे पूर्वजों की संपत्ति नहीं हैं, जिन्हें हम अपने मनमाने और निजी फायदे की अपेक्षा में खो दें। हमें अपने पूर्वजों की संपत्ति अपने बच्चों–बच्चों तक पहुँचानी होती है। गांधीजी का कथन था कि पृथ्वी के पास लोगों की जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन लोभ के लिए नहीं।

आज पारंपरिक मान्यता है कि पृथ्वी एक जीवंत इकाई है, इसका समस्त रूप, जलवायु, जीवन–जंतु इसके जीवंत होने की पुष्टि करते हैं। भौगोलिक स्थिति की दृष्टि से स्पष्ट है कि पृथ्वी प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है। इसका कोई विकल्प नहीं। इसीलिए 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के रूप में मनाना तभी सार्थक है जब हम संकल्प लें कि इस दिशा में संजीदगी से सोचें और कार्य करें। प्रकृति को सौंदर्य का साधन न बनाएं बल्कि जीवन रक्षक आधार मानें। इसके लिए हमें सामूहिक चेतना, प्रयास और संकल्प की दिशा में जीवन को नए सिरे से सजाना होगा।

 

Question: 1

वर्ष 2024 का ‘पृथ्वी दिवस’ केंद्रित है –

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लंबे उत्तर में विषय की पृष्ठभूमि, वर्तमान सन्दर्भ, समस्या का विस्तार और निष्कर्ष — इन सभी को क्रमशः जोड़ें। यह उत्तर को विश्लेषणात्मक और समृद्ध बनाता है।
Updated On: Jul 21, 2025
  • पर्यावरण
  • प्लास्टिक
  • जलवायु
  • प्रदूषण
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The Correct Option is B

Solution and Explanation

हर वर्ष 22 अप्रैल को मनाया जाने वाला ‘पृथ्वी दिवस’ विश्वभर में पर्यावरण जागरूकता का एक प्रमुख अवसर होता है। इसकी शुरुआत 1970 में हुई थी और तब से यह दिन वैश्विक समुदाय को प्रकृति के प्रति जागरूकता, संरक्षण और सतत विकास की दिशा में प्रेरित करता रहा है।
वर्ष 2024 का पृथ्वी दिवस “Planet vs. Plastics” थीम के साथ मनाया गया, जिसका आशय है — ‘पृथ्वी बनाम प्लास्टिक’।
इसका उद्देश्य था प्लास्टिक के खतरों को उजागर करना और 60% तक प्लास्टिक उत्पादन को वर्ष 2040 तक कम करने की वैश्विक मांग को मजबूत करना।
इस थीम के तहत स्कूलों, संगठनों, सरकारों और नागरिकों को यह संदेश दिया गया कि प्लास्टिक न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी गंभीर संकट बन चुका है।
प्लास्टिक अपशिष्ट नदियों, महासागरों, मछलियों, पक्षियों और अंततः मानव शरीर में माइक्रोप्लास्टिक के रूप में प्रवेश कर रहा है। इससे कैंसर, हार्मोनल असंतुलन और अन्य रोगों की आशंका बढ़ गई है।
इसलिए वर्ष 2024 का फोकस प्लास्टिक के विरुद्ध वैश्विक अभियान चलाने, पुनः प्रयोग को बढ़ावा देने, बायोडिग्रेडेबल विकल्पों को अपनाने और प्लास्टिक निर्मूलन के लिए नीति-निर्माताओं पर दबाव बनाने पर था।
पृथ्वी दिवस पर यह थीम विशेष रूप से युवाओं और स्कूलों के लिए प्रेरणादायक बनी, जिन्होंने स्वैच्छिक प्रयासों के माध्यम से प्लास्टिक फ्री कैंपेन, सफाई अभियान और पर्यावरणीय शिक्षा कार्यक्रमों में भाग लिया।
निष्कर्षतः, यह स्पष्ट है कि वर्ष 2024 में पृथ्वी दिवस का मुख्य केंद्रबिंदु प्लास्टिक ही था, न कि सामान्य रूप से पर्यावरण या जलवायु।
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Question: 2

गद्यांश में प्रयुक्त ‘सभी लोग जाग जाएँ’ का आशय है –

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‘जागना’ जैसे शब्द प्रतीकात्मक होते हैं — इनका आशय केवल शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक और सामाजिक चेतना से होता है। ऐसे शब्दों के संदर्भ को समझना बहुत ज़रूरी होता है।
Updated On: Jul 21, 2025
  • पृथ्वी की रक्षा के प्रति सचेत हो जाएँ।
  • समय पर अपने कर्तव्य की पूर्ति करें।
  • अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का पालन करें।
  • पारंपरिक अंधविश्वासों से मुक्त हो जाएँ।
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The Correct Option is A

Solution and Explanation

गद्यांश में ‘सभी लोग जाग जाएँ’ का प्रयोग एक रूपक के रूप में किया गया है, जो पाठकों को पर्यावरणीय संकट के प्रति जागरूक करने का आह्वान करता है।
आज पृथ्वी प्लास्टिक, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से संकट में है। ऐसे में लेखक का यह कहना कि “सभी लोग जाग जाएँ” — एक चेतावनी है कि यदि हम समय रहते सचेत नहीं हुए, तो हमारा और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य संकट में पड़ सकता है।
यह वाक्य केवल शाब्दिक जागरण नहीं बल्कि चेतना, उत्तरदायित्व और संवेदनशीलता की आवश्यकता को दर्शाता है। इसमें भाव है कि हर व्यक्ति को पृथ्वी की रक्षा को व्यक्तिगत और सामूहिक दायित्व समझकर सक्रिय होना चाहिए।
इसलिए सही उत्तर है: (A) पृथ्वी की रक्षा के प्रति सचेत हो जाएँ।
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Question: 3

पृथ्वी की माँ से तुलना का आधार है –

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‘पृथ्वी = माँ’ जैसी उपमाएं जब दी जाती हैं, तो इनके पीछे मौजूद कार्य या गुण को पहचानना जरूरी होता है — केवल भावात्मक संदर्भ पर्याप्त नहीं होता।
Updated On: Jul 21, 2025
  • पालन-पोषण का गुण
  • रक्षा करने का गुण
  • जन्म देने का गुण
  • सहन करने का गुण
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The Correct Option is A

Solution and Explanation

पृथ्वी को 'माँ' कहे जाने का आधार केवल सांस्कृतिक या भावनात्मक नहीं, बल्कि व्यवहारिक भी है। जिस प्रकार माँ अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है, उन्हें आहार, सुरक्षा और पोषण प्रदान करती है — उसी प्रकार पृथ्वी भी हमें जल, अन्न, खनिज, वायु, वनस्पति, पशु और सभी आवश्यक प्राकृतिक संसाधन देती है।
माँ की तरह ही पृथ्वी भी बिना किसी भेदभाव के अपने सभी जीवों की देखभाल करती है और उनका जीवन चक्र चलाती है। यह गुण पालन-पोषण का सबसे बड़ा प्रतीक है।
इसलिए ‘माँ’ की उपमा पृथ्वी को देना सर्वथा उपयुक्त है और इसका आधार है: (A) पालन-पोषण का गुण।
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Question: 4

प्रकृति के प्रति गांधीजी का क्या दृष्टिकोण था ?

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गांधीजी के विचारों में सादगी, संयम और सह-अस्तित्व की भावना थी — जो पर्यावरण संरक्षण के मूल सिद्धांत हैं।
Updated On: Jul 21, 2025
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Solution and Explanation

गांधीजी का प्रकृति के प्रति दृष्टिकोण अत्यंत सह-अस्तित्व आधारित था। वे प्रकृति को केवल उपयोग की वस्तु नहीं, बल्कि पूजनीय मानते थे। उनका मानना था कि मनुष्य को प्रकृति से उतना ही लेना चाहिए जितनी उसे आवश्यकता हो, लालच नहीं करना चाहिए।
उन्होंने ‘ट्रस्टीशिप’ का सिद्धांत दिया — जिसके अनुसार मनुष्य को प्राकृतिक संसाधनों का रक्षक बनकर, भावी पीढ़ियों के हित को ध्यान में रखते हुए उन्हें उपयोग करना चाहिए।
गांधीजी के अनुसार, प्रकृति और मानव के बीच संतुलन आवश्यक है, वरना संसाधनों का क्षय और नैतिक पतन दोनों होंगे।
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Question: 5

बढ़ती हुई आबादी के कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं ?

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जब भी आप जनसंख्या विषय पर लिखें, तो "प्राकृतिक संसाधनों पर प्रभाव" और "सामाजिक-आर्थिक परिणाम" दोनों को अवश्य जोड़ें।
Updated On: Jul 21, 2025
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Solution and Explanation

बढ़ती जनसंख्या के कारण अनेक सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इनमें प्रमुख हैं —
1. प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन
2. रोजगार, जल, भोजन और आवास की कमी
3. वनों की कटाई और जैव विविधता में ह्रास
4. प्रदूषण में वृद्धि — वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण
5. स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा पर दबाव
इन दुष्परिणामों से न केवल पर्यावरण असंतुलित हो रहा है, बल्कि सामाजिक असमानता और गरीबी भी बढ़ रही है।
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Question: 6

गैर-नवीकरणीय ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा के अंतर को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

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हर उत्तर में उदाहरण ज़रूर दें — जैसे "सौर ऊर्जा" या "कोयला" — यह उत्तर को स्पष्ट और प्रभावशाली बनाता है।
Updated On: Jul 21, 2025
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Solution and Explanation

गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत: वे स्रोत जो सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं और पुनः निर्मित नहीं हो सकते, जैसे — कोयला, पेट्रोलियम, डीजल, प्राकृतिक गैस।
नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत: वे स्रोत जो प्रकृति द्वारा निरंतर उपलब्ध होते हैं और पुनः उपयोग योग्य होते हैं, जैसे — सूर्य की ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल विद्युत, जैविक अपशिष्ट से ऊर्जा।
मुख्य अंतर: गैर-नवीकरणीय ऊर्जा पर्यावरण को अधिक प्रदूषित करती है, जबकि नवीकरणीय ऊर्जा स्वच्छ, हरित और दीर्घकालिक होती है।
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Question: 7

प्रकृति की रक्षा प्रत्येक मनुष्य के लिए क्यों आवश्यक है ?

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पर्यावरण विषयों पर उत्तर लिखते समय "व्यक्तिगत जिम्मेदारी" को ज़रूर शामिल करें — यह दृष्टिकोण स्पष्ट करता है।
Updated On: Jul 21, 2025
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Solution and Explanation

प्रकृति ही मानव जीवन का मूल आधार है। वायु, जल, भोजन, औषधियाँ, ऊर्जा — सब प्रकृति से प्राप्त होते हैं। यदि प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है, तो मानव जीवन संकट में पड़ जाता है।
प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, संसाधनों की कमी — ये सभी समस्याएं तब उत्पन्न होती हैं जब मनुष्य प्रकृति का दोहन करता है।
इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह वृक्ष लगाए, जल बचाए, प्लास्टिक का उपयोग कम करे और पर्यावरणीय चेतना को बढ़ाए।
केवल सरकार नहीं, बल्कि हर नागरिक को अपनी भूमिका निभानी होगी।
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