तृतीय सर्ग का सारांश ('नमक सत्याग्रह')
'मुक्तिदूत' खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग में गाँधीजी के प्रसिद्ध 'नमक सत्याग्रह' या 'दांडी यात्रा' का वर्णन है।
अंग्रेज सरकार ने नमक जैसी आवश्यक वस्तु पर कर लगा दिया, जिससे आम जनता, विशेषकर गरीब, बहुत परेशान थे।
इस अन्यायपूर्ण कानून का विरोध करने के लिए गाँधीजी ने साबरमती आश्रम से दांडी नामक समुद्र तटीय गाँव तक की पदयात्रा करने का निश्चय किया।
12 मार्च, 1930 को गाँधीजी अपने 78 अनुयायियों के साथ इस ऐतिहासिक यात्रा पर निकले। रास्ते में हजारों लोग उनके साथ जुड़ते गए, जिससे यह एक विशाल जन-सैलाब बन गया।
लगभग 24 दिनों की यात्रा के बाद 6 अप्रैल, 1930 को वे दांडी पहुँचे। वहाँ उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर अंग्रेजी कानून को तोड़ा।
इस घटना ने पूरे देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत कर दी और स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की। यह सर्ग गाँधीजी के दृढ़ निश्चय और अहिंसक प्रतिरोध की शक्ति को दर्शाता है।