'मुक्तिदूत' खण्डकाव्य के नायक महात्मा गाँधी हैं। कवि डॉ. राजेन्द्र मिश्र ने उन्हें एक अवतारी पुरुष के रूप में चित्रित किया है, जो भारत को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अवतरित हुए थे। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
दिव्य एवं अलौकिक पुरुष: कवि ने गाँधीजी को ईश्वर का अवतार माना है। वे सामान्य मनुष्य होते हुए भी दिव्य गुणों से युक्त थे। उनका जन्म ही भारत के उद्धार के लिए हुआ था।
हरिजनोद्धारक: गाँधीजी समाज में व्याप्त छुआछूत और भेदभाव के घोर विरोधी थे। उन्होंने दलितों और शोषित वर्ग को 'हरिजन' (ईश्वर के जन) नाम दिया और उनके सामाजिक समानता के अधिकारों के लिए जीवन भर संघर्ष किया।
सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक: सत्य और अहिंसा गाँधीजी के दो सबसे बड़े शस्त्र थे। उन्होंने इन्हीं सिद्धांतों के बल पर शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य को पराजित किया। उनके अनुसार, अहिंसा कायरों का नहीं, बल्कि वीरों का अस्त्र है।
दृढ़-संकल्प: गाँधीजी के चरित्र की एक प्रमुख विशेषता उनका दृढ़-निश्चयी होना है। वे जो भी संकल्प ले लेते थे, उसे पूरा करके ही रहते थे। भारत को स्वतंत्र कराने का उनका संकल्प इसी का प्रमाण है।
मानवता के अग्रदूत: गाँधीजी के विचार किसी एक जाति, धर्म या देश तक सीमित नहीं थे। वे सम्पूर्ण मानवता के पुजारी थे और 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' तथा विश्व-बंधुत्व की भावना में विश्वास रखते थे।