मृत्यु से आप क्या समझते हैं?
Step 1: देह–आत्मा भेद.
देह नश्वर, आत्मा नित्य—उपनिषद/गीता की प्रतिज्ञा; मृत्यु केवल उपाधि-परिवर्तन है।
Step 2: कर्म–संस्कार और गमन.
प्रारब्ध भोग पूरा होने पर देह त्याग; शेष संस्कारों के साथ जीव सूक्ष्म-देह लिए नए शरीर ग्रहण करता है—यही संसार-चक्र।
Step 3: नैतिक अर्थ.
मृत्यु-स्मरण जीवन-मूल्य स्पष्ट करता है—कर्तव्य-पालन, करुणा, संयम; क्योंकि कर्म ही भविष्य-गति का निर्धारक है।
Step 4: मुक्ति-दृष्टि.
ज्ञान से अहंकार-नाश, भक्ति से समर्पण, योग से चित्त-निरोध—ये सब जन्म–मरण-चक्र का अतिक्रमण कर अमृतत्व का बोध कराते हैं।
भारतीय दर्शन की उत्पत्ति किससे मानी जाती है?
चार्वाक, बौद्ध और जैन किस दार्शनिक सम्प्रदाय में आते हैं?
भारतीय दर्शन की मूल दृष्टि है
'ऋत' सम्बन्धित है—
'कर्म' शब्द की उत्पत्ति हुई है—