'मेवाड़ मुकुट' खण्डकाव्य का 'पृथ्वीराज' सर्ग महाराणा प्रताप के स्वाभिमान और दृढ़-प्रतिज्ञा को पुनः जाग्रत करने की एक महत्वपूर्ण घटना पर आधारित है। इसका कथानक इस प्रकार है:
बीकानेर के राजकुमार पृथ्वीराज, जो एक वीर योद्धा और कवि थे, अकबर के दरबार में रहते थे। वे मन-ही-मन महाराणा प्रताप को अपना आदर्श मानते थे।
अकबर के दरबार में यह झूठी खबर फैल जाती है कि विपत्तियों से तंग आकर महाराणा प्रताप अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाले हैं। यह सुनकर अकबर बहुत प्रसन्न होता है, किन्तु पृथ्वीराज को इस पर विश्वास नहीं होता।
उनका हृदय यह मानने को तैयार नहीं था कि प्रताप जैसा वीर अपना स्वाभिमान त्याग सकता है। अपने मन की शंका को दूर करने और प्रताप के सोए हुए स्वाभिमान को जगाने के लिए वे एक ओजस्वी पत्र लिखते हैं।
उस पत्र में वे पूछते हैं कि क्या अब सूर्य पश्चिम से उगेगा? क्या अब राजपूत अपनी मूंछों पर ताव नहीं देंगे? हे राणा! आपकी वीरता पर हम सबको गर्व है, आप इस प्रकार अधीनता स्वीकार न करें।
जब यह पत्र महाराणा प्रताप को मिलता है, तो वे उसे पढ़कर आत्मग्लानि से भर उठते हैं और उनका क्षत्रिय स्वाभिमान पुनः जाग्रत हो जाता है।
वे पृथ्वीराज को उत्तर भेजते हैं कि जब तक प्रताप के शरीर में प्राण हैं, मेवाड़ की धरती पर मुगलों का झंडा नहीं फहरेगा और सूर्य पूर्व से ही उगेगा। यह उत्तर पाकर पृथ्वीराज का हृदय गर्व से भर जाता है।