'मेवाड़ मुकुट' खण्डकाव्य के 'लक्ष्मी सर्ग' (तृतीय सर्ग) का सारांश
'लक्ष्मी सर्ग' में महाराणा प्रताप की पत्नी महारानी लक्ष्मी की चिन्ताओं और वेदना का मार्मिक चित्रण है।
अरावली के जंगल में महारानी लक्ष्मी अपने पुत्र को गोद में लिए बैठी हैं और अतीत के सुखद दिनों को याद कर रही हैं। उन्हें अपने महलों का सुख, वैभव और दास-दासियों की सेवाएँ याद आती हैं। उन सुखों की तुलना वर्तमान के कष्टमय जीवन से करके वे अत्यंत दुखी हो जाती हैं।
वे सोचती हैं कि उनके बच्चे, जो राजकुमार हैं, आज जंगल में भूख-प्यास से व्याकुल होकर भटक रहे हैं। यह विचार उनके हृदय को बींध देता है। वह अपनी पुत्री के बारे में सोचती हैं, जिसे जंगली बिलाव के रोटी छीन लेने पर रोना पड़ा था। यह सब सोचकर उनकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं।
तभी उनका पुत्र अपनी तोतली भाषा में अपनी भूख की बात करता है, जिसे सुनकर लक्ष्मी और भी व्याकुल हो उठती हैं। वे अपने भाग्य को कोसती हैं। इसी बीच महाराणा प्रताप वहाँ आ जाते हैं और उन्हें चिन्तित देखकर उनकी चिन्ता का कारण पूछते हैं। यहीं पर यह सर्ग समाप्त हो जाता है। यह सर्ग एक माँ और पत्नी के हृदय की वेदना को अत्यंत सजीव रूप में प्रस्तुत करता है।