'मेवाड़ मुकुट' खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग 'अरावली' का सारांश
'मेवाड़ मुकुट' का प्रथम सर्ग 'अरावली' महाराणा प्रताप के संघर्षपूर्ण जीवन को प्रस्तुत करता है। हल्दीघाटी के युद्ध में पराजित होने के पश्चात् महाराणा प्रताप अपने परिवार सहित अरावली के घने जंगलों में भटक रहे हैं। वे मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अनेक कष्ट सहन कर रहे हैं। उनके बच्चे भूख से व्याकुल हैं और उन्हें घास की रोटियाँ खानी पड़ रही हैं।
सर्ग की सबसे मार्मिक घटना तब घटती है, जब महाराणा प्रताप की छोटी बेटी के हाथ से एक जंगली बिलाव घास की रोटी छीनकर भाग जाता है। बेटी की भूख और उसके करुण क्रंदन को देखकर प्रताप का हृदय विचलित हो उठता है। वे अपनी प्रतिज्ञा पर संदेह करने लगते हैं और सोचते हैं कि उनके इस हठ के कारण उनका परिवार इतना कष्ट झेल रहा है।
इस मानसिक संघर्ष की स्थिति में, वे क्षणिक आवेश में आकर मेवाड़ की स्वतंत्रता का संकल्प त्यागकर अकबर की अधीनता स्वीकार करने का विचार करने लगते हैं। इसी द्वंद्व और पीड़ा के साथ प्रथम सर्ग समाप्त होता है। यह सर्ग प्रताप की संघर्षशीलता और उनकी मार्मिक मानवीय पीड़ा को दर्शाता है।