'मेवाड़ मुकुट' खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग का शीर्षक 'लक्ष्मी' है, जिसे प्रश्न में 'दौलत' कहा गया है। इस सर्ग में महाराणा प्रताप की पत्नी महारानी लक्ष्मी की चिंताओं और त्याग का मार्मिक चित्रण है। इसकी कथावस्तु इस प्रकार है:
अरावली के जंगल में महाराणा प्रताप अपनी राजधानी बनाकर रह रहे हैं। उनकी पत्नी महारानी लक्ष्मी (चिंता) अपने बच्चों की दयनीय दशा को देखकर अत्यंत दुखी हैं।
वे अपने अतीत के राजसी वैभव को याद करती हैं, जब उनके बच्चे सोने के पालने में झूलते थे और आज वे जंगल में धरती पर सो रहे हैं।
वे सोचती हैं कि उनके पति ने मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए राज-सुखों का त्याग कर दिया, किन्तु इस कठोर संघर्ष का कोई अंत दिखाई नहीं दे रहा है।
उनकी पुत्री दौलत घास की रोटी खाकर अपना जीवन बिता रही है। यह सब देखकर उनका मातृ-हृदय व्याकुल हो उठता है।
इसी बीच, दौलत अपनी माता के पास आती है और मेवाड़ की दुर्दशा पर एक मार्मिक गीत सुनाती है, जिसे सुनकर लक्ष्मी की आँखों से आँसू बहने लगते हैं।
इस सर्ग में कवि ने एक माँ और पत्नी के हृदय की पीड़ा, बच्चों के प्रति चिंता और देश के लिए किए गए त्याग का सजीव चित्रण किया है।