'मेवाड़ मुकुट' खण्डकाव्य का 'अरावली' सर्ग इसका प्रथम सर्ग है। यह सर्ग हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात् की घटनाओं पर आधारित है और इसमें महाराणा प्रताप के अंतर्द्वंद्व, उनकी पीड़ा और दृढ़ प्रतिज्ञा का मार्मिक चित्रण है।
Step 1: The Setting:
हल्दीघाटी के युद्ध में पराजित होने के पश्चात् महाराणा प्रताप अपने परिवार सहित अरावली पर्वत की घाटियों में शरण लिए हुए हैं। वे अपनी मातृभूमि मेवाड़ की दुर्दशा और अपनी पराजय पर अत्यंत दुःखी और चिंतित हैं।
Step 2: Pratap's Inner Turmoil:
उनकी पत्नी महारानी लक्ष्मी उनकी चिंता का कारण पूछती हैं। प्रताप उन्हें बताते हैं कि वे अपने भाई शक्तिसिंह के विश्वासघात और अपनी हार से व्यथित हैं। वे अपने व्यक्तिगत सुख-दुःख की चिंता नहीं करते, बल्कि उन्हें चिंता इस बात की है कि वे मेवाड़ को कैसे स्वतंत्र कराएंगे।
Step 3: The Resolve:
प्रताप अपने बच्चों को जमीन पर सोते और घास की रोटियाँ खाते हुए देखते हैं, जिससे उनका हृदय द्रवित हो उठता है। एक क्षण के लिए वे विचलित होते हैं, परन्तु अगले ही क्षण वे स्वयं को संभालते हैं। वे अपनी प्रतिज्ञा को दोहराते हैं कि जब तक वे मेवाड़ को शत्रुओं से मुक्त नहीं करा लेते, तब तक वे महलों में नहीं रहेंगे, पलंग पर नहीं सोएंगे और सोने-चाँदी के बर्तनों में भोजन नहीं करेंगे। यह सर्ग प्रताप की कष्ट-सहिष्णुता और उनकी अटूट देशभक्ति को दर्शाता है।