'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग 'संकल्प' का सारांश
डॉ. जयशंकर त्रिपाठी द्वारा रचित 'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य का प्रथम सर्ग 'संकल्प' नायक चन्द्रशेखर आजाद के क्रान्तिकारी जीवन के आरम्भ को प्रस्तुत करता है।
सर्ग का प्रारम्भ भारत की तत्कालीन दयनीय स्थिति के चित्रण से होता है। अंग्रेजी शासन के अत्याचारों से त्रस्त भारत माता अपनी मुक्ति के लिए पुकार रही है। किशोर चन्द्रशेखर अपने देश की यह दुर्दशा देखकर अत्यंत व्यथित होते हैं। वे अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर भारत को स्वतंत्र कराने के आन्दोलन में भाग लेने का दृढ़ संकल्प लेते हैं।
उस समय गांधीजी का असहयोग आन्दोलन चल रहा था। चन्द्रशेखर भी उसमें कूद पड़ते हैं। विदेशी वस्त्रों की दुकान पर धरना देते समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। जब उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है, तो वे निर्भीकता से अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वाधीन' और घर 'जेलखाना' बताते हैं।
इस उत्तर से क्रोधित होकर अंग्रेज मजिस्ट्रेट उन्हें पन्द्रह बेंतों की कठोर सजा सुनाता है। प्रत्येक बेंत के प्रहार पर किशोर चन्द्रशेखर पीड़ा से कराहने के बजाय 'भारत माता की जय' का उद्घोष करते हैं। यहीं से उनका नाम 'आजाद' पड़ गया और वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रान्तिकारी के रूप में प्रसिद्ध हुए।