'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य का द्वितीय सर्ग 'संघर्ष' है। इसमें चन्द्रशेखर आज़ाद के क्रांतिकारी जीवन की प्रमुख संघर्षपूर्ण घटनाओं का वर्णन है।
असहयोग आंदोलन के स्थगित होने से निराश होकर आज़ाद जैसे युवा क्रांतिकारी सशस्त्र क्रांति के मार्ग पर चल पड़ते हैं।
वे अपने दल के लिए धन एकत्र करने के उद्देश्य से 9 अगस्त, 1925 को 'काकोरी' में सरकारी खजाना ले जा रही ट्रेन को लूट लेते हैं। इस घटना से अंग्रेजी सरकार में हड़कंप मच जाता है।
सरकार क्रांतिकारियों की बड़े पैमाने पर धर-पकड़ करती है। रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, रोशन सिंह और राजेन्द्र اللاهड़ी को फाँसी दे दी जाती है।
आज़ाद पुलिस को चकमा देकर फरार हो जाते हैं। वे दुखी और अकेले रह जाते हैं, पर हिम्मत नहीं हारते।
वे पुनः अपने दल को संगठित करते हैं और लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए लाहौर में पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या कर देते हैं।
इसके बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली की असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाते हैं ताकि सोई हुई अंग्रेजी सरकार को जगाया जा सके।
यह सर्ग आज़ाद के निरंतर संघर्ष, त्याग, संगठन क्षमता और साहस को दर्शाता है।