'बलिदान' सर्ग 'मातृ-भूमि के लिए' खण्डकाव्य का अन्तिम और सबसे मार्मिक सर्ग है। इसका कथानक इस प्रकार है:
आज़ाद का अल्फ्रेड पार्क में होना: चन्द्रशेखर आज़ाद इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के अल्फ्रेड पार्क में अपने एक साथी के साथ भविष्य की योजनाओं पर चर्चा कर रहे थे।
विश्वासघात और पुलिस का आगमन: तभी एक विश्वासघाती देशद्रोही ने पुलिस को सूचना दे दी। देखते ही देखते अंग्रेज पुलिस अधीक्षक नॉट-बावर और एसपी सिटी विश्वेश्वर सिंह ने भारी पुलिस बल के साथ पार्क को चारों ओर से घेर लिया।
भीषण संघर्ष: आज़ाद ने अपने साथी को सुरक्षित भेज दिया और अकेले ही वृक्ष की आड़ लेकर पुलिस से लोहा लेने लगे। दोनों ओर से गोलियाँ चलने लगीं। आज़ाद ने अपनी वीरता से कई अंग्रेज सिपाहियों को घायल कर दिया और नॉट-बावर की कलाई को भी अपनी गोली से जख्मी कर दिया।
प्रतिज्ञा का पालन: जब आज़ाद के पास केवल एक गोली बची, तो उन्हें अपनी प्रतिज्ञा याद आई कि वे कभी भी जीवित अंग्रेजों के हाथ नहीं आएँगे।
आत्म-बलिदान: अपनी प्रतिज्ञा की रक्षा के लिए उन्होंने वह अन्तिम गोली अपनी कनपटी पर दाग ली और भारत माता के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। उनके इस बलिदान से धरती काँप उठी और प्रकृति भी शोक में डूब गई। इस प्रकार, उन्होंने अपनी वीरता और त्याग से इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया।