'तुमुल' खण्डकाव्य का यह सर्ग लंका-युद्ध की एक अत्यंत महत्वपूर्ण और मार्मिक घटना पर आधारित है। इसकी कथावस्तु इस प्रकार है:
रावण के कई वीर पुत्रों और योद्धाओं के मारे जाने के बाद, उसका अजेय पुत्र मेघनाद (इन्द्रजीत) युद्ध के लिए आता है।
मेघनाद और लक्ष्मण के बीच भयंकर युद्ध छिड़ जाता है। दोनों योद्धा अपनी पूरी शक्ति और दिव्यास्त्रों का प्रयोग करते हैं। मेघनाद मायावी शक्तियों का भी प्रयोग करता है, किन्तु लक्ष्मण उसके हर प्रहार को विफल कर देते हैं।
जब मेघनाद किसी भी तरह से लक्ष्मण को पराजित नहीं कर पाता, तो वह क्रोध में भरकर अपनी कुलदेवी से प्राप्त अमोघ 'शक्ति' अस्त्र का प्रयोग लक्ष्मण पर कर देता है।
उस 'शक्ति' के प्रहार से लक्ष्मण मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ते हैं। वानर सेना में हाहाकार मच जाता है और श्रीराम के शिविर में शोक की लहर दौड़ जाती है।
हनुमानजी लक्ष्मण को उठाकर श्रीराम के पास लाते हैं। अपने प्रिय भाई की यह दशा देखकर श्रीराम एक साधारण मनुष्य की भाँति विलाप करने लगते हैं।
विभीषण के कहने पर लंका के राजवैद्य सुषेण को बुलाया जाता है। सुषेण बताते हैं कि हिमालय की द्रोणगिरि पर्वत पर स्थित संजीवनी बूटी से ही सूर्योदय से पूर्व लक्ष्मण के प्राण बचाए जा सकते हैं।
श्रीराम के आदेश पर हनुमानजी संजीवनी बूटी लाने के लिए आकाश मार्ग से हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं। यह सर्ग श्रीराम के भ्रातृ-प्रेम और हनुमान की स्वामी-भक्ति को उजागर करता है।