'कर्ण' खण्डकाव्य के नायक दानवीर कर्ण हैं। उनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
महान दानवीर: दानवीरता कर्ण के चरित्र का सर्वप्रमुख गुण है। वे प्रतिदिन याचकों को दान देते थे। उन्होंने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए अपने जन्मजात कवच-कुण्डल भी इन्द्र को दान में दे दिए।
सच्चा मित्र: कर्ण एक आदर्श और सच्चे मित्र थे। उन्होंने दुर्योधन के उपकारों को सदा याद रखा और उसके लिए अपने प्राणों की भी आहुति दे दी, यद्यपि वे जानते थे कि दुर्योधन अधर्म के मार्ग पर है।
अद्वितीय योद्धा: वे अपने समय के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धरों में से एक थे। उनकी वीरता की प्रशंसा स्वयं श्रीकृष्ण भी करते थे।
गुरुभक्त: वे एक महान गुरुभक्त थे। उन्होंने परशुराम से शस्त्र-विद्या सीखने के लिए अनेक कष्ट सहे और उनका श्राप भी चुपचाप स्वीकार कर लिया।
जाति-प्रथा का शिकार: कर्ण का चरित्र सामाजिक अन्याय और जाति-प्रथा की विडंबना को भी दर्शाता है। सूत-पुत्र होने के कारण उन्हें जीवन भर अपमान सहना पड़ा, जिससे उनका चरित्र और भी अधिक त्रासद और महान बन जाता है।