Question:

'कर्ण' खण्डकाव्य के चतुर्थ सर्ग में वर्णित श्रीकृष्ण और कर्ण के संवाद की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए । 
 

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इस संवाद का सार लिखते समय, श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए प्रलोभन और कर्ण द्वारा मित्र-धर्म को सर्वोपरि बताते हुए दिए गए उत्तर, इन दो बिंदुओं को प्रमुखता दें। यह कर्ण के चरित्र का एक निर्णायक क्षण है।
Updated On: Nov 11, 2025
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Solution and Explanation

'कर्ण' खण्डकाव्य के चतुर्थ सर्ग में महाभारत युद्ध से पूर्व श्रीकृष्ण और कर्ण के बीच हुए महत्वपूर्ण संवाद का वर्णन है। इसकी कथावस्तु इस प्रकार है:
महाभारत युद्ध को टालने के अंतिम प्रयास के रूप में, श्रीकृष्ण कर्ण से मिलने आते हैं।
श्रीकृष्ण कर्ण को उसके जन्म का रहस्य बताते हैं कि वह कुन्ती का पुत्र है और पाण्डव उसके भाई हैं।
श्रीकृष्ण कर्ण से कहते हैं कि वह अधर्म का साथ छोड़कर धर्म (पाण्डवों) के पक्ष में आ जाए। वे उसे पाण्डवों का ज्येष्ठ भाई होने के नाते राज्य का सिंहासन दिलाने का भी प्रलोभन देते हैं।
कर्ण श्रीकृष्ण की सभी बातें ध्यान से सुनता है। वह अपने जन्म के रहस्य को जानकर दुखी होता है, पर विचलित नहीं होता।
कर्ण श्रीकृष्ण के प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर देता है। वह कहता है कि दुर्योधन ने संकट के समय उसे सम्मान और मित्रता दी, इसलिए वह मित्र-धर्म से बँधा हुआ है और किसी भी कीमत पर दुर्योधन का साथ नहीं छोड़ सकता।
वह कहता है कि उसे राज्य का कोई लोभ नहीं है, उसके लिए मित्रता का धर्म सर्वोपरि है। वह जानता है कि इस युद्ध में उसकी मृत्यु निश्चित है, फिर भी वह मित्र के प्रति अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटेगा।
यह संवाद कर्ण के मित्र-धर्म के प्रति निष्ठा और उसके चरित्र की महानता को उजागर करता है।
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